जनतानामा न्यूज़ भुवन जोशी अल्मोड़ा उत्तराखंड

अल्मोड़ा -पूरे देश भर मे इन दो दिनों मे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम रही अल्मोड़ा आर्य समाज मे भी यह पर्व धूमधाम से मनाया गया , प्रधान दिनेश तिवारी व कोषाध्यक्ष गौरव भट्ट ने यज्ञ का प्रवन्ध किया इस अवसर पर आर्य समाज के मन्त्री दयाकृष्ण काण्ड़पाल ने कहा कि जन्माष्टमी में सम्पूर्ण देश मे श्रीकृष्ण के चित्र तो खूब पूजे गये नृत्य व स्वांग भी काफी रचे गये पर चरित्र पर बहुत कम व्यख्यान हुए, बासुदेव देवकी पुत्र कृष्ण का वास्तविक छवि का दिव्यचित्रण समाज मे कम ही बताया गया ,अधिकांश लोग नृत्य व गायन मे ही मस्त है उन्होने कहा कि । श्रीकृष्ण का एक नाम “पर्जन्य” भी कहा गया यह नाम ब्रह्मचारी के नाम का संकेत है पर समाज मे नृतक उन्हे स्त्रियों के पीछे मोह मे फसा दिखाते है , उनकी सोलह हजार एक सो आठ रानिया बताई जाती , सत्य यह है कि कृष्ण सोलह हजार वेद की ऋचाओं मे मग्न रहते थे ये मन्त्र उन्हें कंठस्थ थें श्री कृष्ण हर समय इन ऋचाओं में मुग्ध रहा करते थे। उनकी पत्नी रुक्मणि उनसे कहा करती थी कि प्रभु! आप तो हर समय इन वेद रूपी गोपिकाओं में रमण करते रहते हैं तो उस समय भगवान् कृष्ण कहा करते थे हे देवी! परमात्मा ने इस वेद रूपी अमूल्य प्रकाश को जानने ले लिए मुझे उत्पन्न किया है। आज इस प्रकाश को जानना है जिनको जानकर मानव मुग्ध हो जाता है और उसके द्वारा वेद की भावनाएँ उत्पन्न होकर संसार सागर से पार हो जाता है। आज का यह तथाकथित हिन्दु समाज श्रीकृष्ण को एक नृतक, बताकर उनका भेष धारण कर नाचते रहते है , आधुनिक काल का ऐसा मत है, कि भगवान् कृष्ण की सोलह हजार गोप-गोपिकाएँ थीं। जिसमें सत्यभामा, रुक्मणि आदि आठ पटरानी कहलाती थी। जिनके साथ वे विनोद करते थे।असल में श्री कृष्ण आठ चक्रों को जानते थे, आठों चक्रों के जानकर व आठों सिद्धियों मे पारंगत होने से वे सोलह हजार वेद मंत्रों के गोपनीय विषयों को जानते थे। श्रीकृण सदैव वेद मन्त्रो से ही विनोद करते रहते थे। वर्तमान समय में इन उपमा अलंकारों के अर्थ का अनर्थ कर दिया। उन गोपनीय विषयों को षोडश कलाओं में नियुक्त माना गया है। इसलिए सोलह कलाएँ होती हैं, ब्रह्म की षोडश कलाएँ हैं और उन षोडश कलाओं की तरंगें होती हैं। मानव शरीर में आठ चक्र और नौ द्वार होते हैं। इसी प्रकार उन सब क्रियाकलापों को भगवान् कृष्ण जानते थे। कंस को विजय करने के पश्चात उन्होंने बारह-बारह वर्षों तक तप किया, ऐसे तपस्वी को देवियों से विनोद करने वाला कहना यह तो अज्ञान है। न जानकर अर्थों का अनर्थ नहीं होना चाहिए। अर्थों का अनर्थ हो करके महापुरुषों के जीवन की आभा समाप्त हो जाती है। उसमें रूढ़ि आ जाती है। और वह रूढ़ि ही उन महापुरुषों को ऐसे विडंबित कर देती है जैसे जीवित मानव को अग्नि में दाह कर देते हैं। श्री कृष्ण के आप्त जजीवनचरित्र को अपने में धारण किया जाये तो मनुष्य इस जीवन-मरण से मुक्त हो मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
