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दशानन कृत ज्योतिष के आज के अंक में मेष लग्न में शनि के द्वादश भावों के शुभ अशुभ फल

३१/मार्च/२०२४ • MARCH 31, 2024


विक्रम संवत २०८१, शक संवत १९४५

यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।

तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम् ॥

मेष लग्न का शनि आपके जीवन मे क्या प्रभाव डाल सकता है जानिए

शनि क्रूर प्रकृति का ग्रह है। यह पश्चिम दिशा का स्वामी तथा पापी ग्रह होने के बावजूद अन्तिम परिणाम सुखद देता है। मेष लग्न में इसके बारह भावों का फलादेश निम्न प्रकार है-

शनि प्रथम भाव में मेष लग्न के पहले भाव में शत्रु मंगल की राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक की समाज में बुराई होती है। उसके सौंदर्य में भी कमी बनी रहती है। लेकिन तीसरी मित्र दृष्टि के तीसरे स्थान पर पड़ने से उसके पराक्रम तथा धन-दौलत में वृद्धि होती है।

पहले नौकरी फिर रोजगार, नौकरी रोजगार दोनों साथ-साथ ही चलें, खूब लाभ, पिता के साथ कार्य, आलसी, प्राइवेट नौकरी, सरकारी मदद, पराक्रमी, चेहरे पर तिल, इन्द्रिय पर कई तिल, पिता से न बने।

शनि की सातवीं मित्र दृष्टि सातवें भाव में पड़ने से जातक का कारोबार बढ़ता है। दसवीं दृष्टि से दसवें भाव को देखने पर समाज तथा राज्य के कामों में सफलता मिलती है। मित्रों से लाभ प्राप्त होता है।

शनि द्वितीय भाव में – मेष लग्न के दूसरे भाव  में मित्र शुक्र की राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक का परिवार बढ़ता है। उसे धन लाभ भी होता है।सोमरी शत्रु दृष्टिः द्वारा चौथे भाव को देखने के कारण उसे भवन तथा भूमि के क्षेत्र में हानि उठानी पड़ती है।

माता की उम्र कम, पिता ही अपना धन नष्ट कर दे, कारोबार में नुकसान, प्राइवेट नौकरी, कंधे व गुदा पर तिल।

शनि की सातवीं शत्रु दृष्टि द्वारा जातक को कई प्राचीन वस्तुओं का लाभ होने के बावजूद मानसिक अशान्ति होती है। दसवीं दृष्टि से उसे आयु लाभ मिलता है।

शनि तृतीय भाव में – मेष लग्न के तीसरे भाव  में मित्र बुध की राशि पर स्थित दशमेश तथा एकादशेश शनि के प्रभाव से जातके भाई-बहनों का भरपूर लाभ उठाता है। उसके पराक्रम में वृद्धि होती है। पिता द्वारा पूर्ण लाभ मिलता है। तीसरी शत्रु दृष्टि द्वारा पांचवें भाव को देखने से शिक्षा में असफलता एवं सन्तान के क्षेत्र में कमी आती है।

पराक्रमी, पिता भी दीर्घजीवी, हृष्ट-पुष्ट भाइयों के साथ कारोबार, भाई के यहाँ नौकरी, सरकारी सहायता, यात्रा में भाई- बहन का सुख, पिता अन्य भाइयों को बहुत चाहता है, धर्म-कर्म में आलस्य, दाहिनी भुजा पर तिल व जाँघ पर तिल ।

शनि की सातवों शत्रु दृष्टि द्वारा नौवें भाव को देखने पर जातक कई अनैतिक कार्य करता है, मगर किस्मत उसका साथ नहीं देती। दसवीं शत्रु दृष्टि द्वारा बारहवें भाव को देखने से उसका खर्च बढ़ता है। कई लोगों से आपसी सम्बंधों में मनमुटाव पैदा हो जाता है।

शनि चतुर्थ भाव में – मेष लग्न के चौथे भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को भूमि और भवन आदि का सुख पूरा नहीं मिलता, लेकिन भौतिक सुखों में वृद्धि होती है। तीसरी मित्र दृष्टि द्वारा छठवें भाव को देखने से शत्रु कमजोर होते हैं।

पिता ने मकान बनवा दिया, दुकान भी मकान में ही है, सरकारी परमिट मिल गए, सवारी चुनावों में काम आती है, कारोबार घर पर ही है, लाभ उत्तम है, माता-पिता की खूब घुटती है, सीने पर तिल, कमर पर तिल ।

 शनि की सातवीं दृष्टि द्वारा दसवें भाव को देखने के कारण व्यवसाय के क्षेत्र में उन्नति होती है। राज्य द्वारा लाभ मिलता है। धन में आंशिक बढ़ोत्तरी होती है। नीच दृष्टि से मेष लग्न को देखने के कारण उसके शरीर में कमजोरी आ जाती है जिससे वह मानसिक रूप से अस्वस्थ रहता है।

शनि पंचम भाव में – मेष लग्न के पांचवें भाव में शत्रु सूर्य की राशि पर स्थित त्रिकोणस्थ शनि के प्रभाव से जातक को विद्या एवं बुद्धि के क्षेत्र में अपार सफलता मिलती है। तीसरी उच्च दृष्टि द्वारा मित्र राशि के सातवें भाव को देखने के कारण कारोबार में लाभ होता है।

अंग्रेजी कमजोर, शिक्षा में कमी, कन्या सन्तति,रोजगार में हानि, दुकान में मामूली आग लग जाए, अध्यापक नाराज रहे, सन्तति आलसी परन्तु ऊँचे कारोबार वाली, सन्तान को नौकरी भी मिल जाए, पिता कहता है कि खूब पढ़ो। नाभि के आसपास तिल ।

शनि द्वारा सातवीं दृष्टि से स्वयं की राशि वाले ग्यारहवें भाव को देखने पर जातक को आय के स्रोतों में विशेष सफलता मिलती है। उसे पिता से भी भरपूर सहयोग मिलता है। दसवीं मित्र दृष्टि द्वारा दूसरे भाव को देखने के कारण धन का लाभ अधिक होता है।

शनि षष्ठम भाव में– मेष लग्न के छठवें भाव  में मित्र बुध की राशि पर स्थित दशमेश तथा एकादशेश शनि के प्रभाव से जातक का अपने पिता से झगड़ा चलता रहता है। राज्य पक्ष से कठिन परिश्रम के बाद सफलता मिलती है। आय में वृद्धि होती है। शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्त होती है।

न कारोबार, न नौकरी। न शत्रु, न रोग, कारोबार कलह के कारण बिगड़ जाए, अफसर शत्रु बन जाए और नौकरी छूट जाए, श्री हनुमान जी की सेवा से लाभ। ऊँची अभिलाषाएँ रहें। दाहिने पैर पर तिल।

शनि द्वारा सातवीं शत्रु दृष्टि से आठवें भाव को देखने पर खर्च में बढ़ोत्तरी होती है तथा नजदीकी रिश्तों में कटुता आती है। दसवीं मित्र दृष्टि से तृतीय भाव को देखने के कारण भाई-बहनों के सुख-सहयोग में वृद्धि होती है। ऐसा व्यक्ति साहसी प्रवृत्ति का हो जाता है।

शनि सप्तम भाव में -मेष लग्न के सातवें भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को अपने व्यवसाय में अनेक प्रकार की सफलताएं मिलती हैं। पत्नी द्वारा लाभ होता है। पिता से भरपूर सहयोग प्राप्त होता है।

उच्चकोटि का रोजगार देखकर विवाह हुआ। पत्नी की सर्विस में उच्वपद, ससुराल अमीर, पिता की समधी से मेल मुलाकात, लेन-देन, राजयोग, इन्द्रिय पर अनेक तिल, पिता अपनी कुछ कमाई पुत्रवधू को भी देता है।

शनि द्वारा सातवीं नीच दृष्टि से अपने शत्रु मंगल के पहले भाव को देखने पर जातक के शरीर में रोग उत्पन्न होता है तथा उसकी सुन्दरता में कमी आती है। दसवीं शत्रु दृष्टि से चौथे भाव को देखने के कारण पारिवारिक सुखों में कमी रहती है। परिवार के सदस्यों में आपसी असन्तोष बना रहता है।

शनि अष्टम भाव में- मेष लग्न के आठवें भाव  में शत्रु मंगल की राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक की आयु में बढ़ोत्तरी होती है। साथ ही प्राचीन वस्तुओं का लाभ भी मिलता है, लेकिन चल सम्पत्ति में अड़चनें आती हैं।

कारोबार बिगड़ जाए, नौकरी छूट जाए, अफसर इन्चार्ज, रुग्ण, विदेश में कारोबार या नौकरी लगे, विदेश से लौटकर न आवे। पितः दुखी, उम्र बड़ी। बाएँ पैर पर हिल।

शनि की सातवीं मित्र दृष्टि से कठिन मेहनत द्वारा ही जातक को आय तथा व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता मिलती है। दसवीं शत्रु दृष्टि के पांचवें स्थान के प्रभाव से जीवन में सन्तान की कमी बनी रहती है। ऐसे व्यक्ति का स्वभाव क्रोधी तथा चिड़चिड़ा हो जाता है।

शनि नवम भाव में- मेष लग्न के नौवें भाव  में स्थित शनि के प्रभाव से जातक का जीवन पहले बहुत विषम परिस्थितियों में व्यतीत होता है। कुछ समय बाद भाग्य में चमत्कारिक वृद्धि होती है। वह धार्मिक कार्यों से दूर रहता है। पिता द्वारा कुछ लाभ मिलता है। तीसरी दृष्टि से स्वराशि वाले ग्यारहवें भाव को देखने पर आय में वृद्धि होती है। व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान मिलता है।

सर्विस तथा रोजगार दोनों भाग्य में लिखे हैं, दैवी शक्ति की सहायता, पिता भी भाग्यवान, अमीर घर, पराक्रमी, सरकार से लाभ। नौकरी में बार-बार तरक्की । बाएँ पेट पर तिल।

शनि की सातवी मित्र दृष्टि द्वारा तृतीय भाव को देखने से जातक के पराक्रम में वृद्धि होती है तथा भाई-बहनों का सुख मिलता है। इसकी मित्र दृष्टि से छठवें भाव को देखने से शत्रु पक्ष पर प्रभाव पड़ता है, जिससे वह उन पर विजय प्राप्त कर लेता है।

शनि दशम भाव में -मेष लग्न के दसवें भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को पिता द्वारा विशेष प्यार तथा लाभ मिलता है। तीसरी शत्रु दृष्टि द्वारा बारहवें स्थान को देखने से उसका दैनिक खर्च अधिक रहता है। बाह्य क्षेत्रों में अड़चनें बनी रहती हैं।

बसें व जहाज में सर्विस, बसें व जहाज अपने भी चलें। नौकर-चाकर कार्य करें। स्वयं हट्टा कट्टा, आलसी, भाग्यवान, अमीर, दरबार में कुर्सी, अफसर इन्वार्ज, हथियार रहें। हथियार नौकरों पर लदे रहें, स्वयं परमिट देने वाला या दिलवाने वाला खर्च कम आमदनी अधिक, हृदय पर तिल।

सातवीं शत्रु दृष्टि द्वारा चौथे भाव को देखने पर जातक मकान तथा भूमि के लिए संघर्ष करता रहता है। दसर्वो उच्च दृष्टि से सातवें भाव को देखने से स्त्री द्वारा सहयोग प्राप्त होता है। काम-धंधों में कई प्रकार से सफलता मिलती है। इस कुण्डली का व्यक्ति ऊंचे विचारों वाला होता है तथा ऐश्वर्यपूर्वक जीवन-यापन करता है।

शनि एकादश भाव में मेष लग्न के ग्यारहवें भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक खूब धन कमाने वाला होता है। उसे पिता द्वारा भरपूर सहयोग मिलता है। तीसरी नीच दृष्टि से शत्रु की राशि वाले प्रथम भाव को देखने से उसे शारीरिक कष्ट होता है जिससे उसकी सुन्दरता में कमी आती है।

लोहे का ऊँचा कारोबार, नौकर-चाकर रहें, सरकारी अफसर मिलकर चलें, मि‌ट्टी पकड़े तो सोना हो, हर कार्य में लाभ। हर कार्य में पिता का साथ, पिता सुखी। स्वास्थ्य कमजोर, उम्र कम, अगले जन्म में खजांची या अफसर बनेगा तथा सुख भोगेगा, बाई भुजा पर तिल

शनि की सातवीं शत्रु दृष्टि द्वारा पंचम भाव को देखने पर जातक के शिक्षा, कारोबार एवं सन्तान पक्ष में कमी रहती है। दसवीं शत्रु दृष्टि से आठवें भाव को देखने से आयु में वृद्धि होती है तथा सामान्य जीवन में छिट-पुट बाधाएं आती रहती हैं।

शनि द्वादश भाव में-मेष लग्न के बारहवें भाव में शत्रु की राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक का खर्च अत्यधिक होता है। विषम परिस्थितियों में काब विपरीत प्रभाव डालते हैं। केवल पिता तथा राज्य द्वारा ही आंशिक लाभ प्राप्त होव है। कुछ ग्रह स्थितिवश अपंगता भी आ जाती है।

न नौकरी लिखी, न रोजगार लिखा, पिता शीघ्र चल बसा। खर्च के मारे परेशान, रोग और शत्रु हमला न करें, पिता की सम्पत्ति नष्ट, बाहरी स्थान के सम्पर्क से कारोबार लाभ, शनि का दान उपयोगी, पिछले जन्म में किसी की नौकरी तथा रोजगारों में लात मारी है इस कारण स्वयं नौकरी तथा रोजगार के लिए परेशान रहता है, सरकार भी साथ नहीं देती, न धन ठहरता है। बाएँ कंधे व आँख पर तिल।

शनि की सातवीं शत्रु दृष्टि द्वारा पांचवें भाव को देखने पर जातक के सन्त पक्ष में कमी रहती है। दसवीं शत्रु दृष्टि का प्रभाव आठवें स्थान पर होने से – काफी निराशा होती है। हर क्षेत्र में बनते हुए काम बिगड़ जाते हैं। कठिन परि द्वारा भी पूर्ण लाभ नहीं प्राप्त होता।

मेष लग्न के जातक मेष लग्न में राहु के होने से पढ़ने वाले प्रभावों की जानकारी के लिए पढ़ें अगले रविवार का
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मेष लग्न के लोगो को पहले से द्वादश भाव मे  राहु का फल

ज्योतिषाचार्य कौशल जोशी शास्त्री
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