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विक्रम संवत २०८०, शक संवत १९४५

यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।

तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम् ॥

जनतानामा न्यूज़ भुवन जोशी अल्मोड़ा उत्तराखण्ड

ज्योतिषचार्य कौशल जोशी (शास्त्री) प्राचीन “कुमायूँ की काशी” माला सोमेश्वर

मेष लग्न में बृहस्पति के द्वादश भावों का शुभाशुभ प्रभाव

मेष लग्न में गुरु

बृहस्पति (गुरु) शुभ सूचक ग्रह माना गया है। यह पीले रंग का तथा पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी होता है। इसके प्रभाव से जातक सभी क्षेत्रों में सफल रहता है। मेष राशि की कुण्डलियों में इसके द्वादश फलादेश इस प्रकार हैं-

गुरु प्रथम भाव में मेष लग्न के प्रथम भाव में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक अत्यधिक मान-प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेता है। यह पांचवीं मित्र दृष्टि से पांचवें भाव को देखता है, इस कारण जातक विद्वान, धनवान तथा तेज बुद्धि वाला होता है। इसकी सातवीं शत्रु दृष्टि से इस कुण्डली के जातक को व्यवसाय के क्षेत्र में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

क्रोधी परन्तु सदाचारी, भाग्यशाली, जन्म से ही घर को हालत संभलती गई। धर्म प्रिय, न्याय प्रिय, खर्च अधिक पारिवारिक स्त्री सुख, दैवशक्ति की सहायता, नाम की मुहर बने।

नौवीं दृष्टि से स्वयं की राशि में नौवें भाव को देखने के कारण जातक की परम सौभाग्य प्राप्त होता है। उसकी प्रवृत्ति उच्च एवं धार्मिक किस्म की होती है। कुल मिलाकर यह ग्रह जातक को धन-धान्य से परिपूर्ण रखता है। उसका जीवन सामान्य से ऊपर व्यतीत होता है। हमेशा उच्च विचारों की शक्ति बनी रहती है।

गुरु द्वितीय भाव में –  मेष लग्न के दसरे भाव में शत्रु शुक्र की राशि पर स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक अपने कार्य-कौशल द्वारा बाहा क्षेत्रों से धन अर्जित उठाना पड़ता है। पांचवी करता है, लेकिन उसे कुछ समय के वि पक्ष को पराजित करने में सफल होता है।

पिता की सम्पत्ति में थोड़ा भाग, दाएँ नेत्र में चोट, दाएँ नेत्र की दृष्टि मामूली कमजोर, धनाढ्य, उम्र बड़ी, प्रभु के दर्शन।
बृहस्पति द्वारा सातवी मित्र दृष्टि से आठवें भाव को देखने पर जातक की आयु में वृद्धि तथा खोई हुई वस्तु प्राप्त होती है। नौवीं दृष्टि से शनि की राशि वाले दसवें स्थान को देखने के कारण उसे पारिवारिक कष्ट झेलने पड़ते हैं।

गुरु तृतीय भाव में- मेष लग्न के तीसरे भाव पर स्थित बहस्पति के प्रभाव से जातक को पराक्रम तथा भाई-बहनों का सुख सातवें भाव को देखने से पत्नी या व्यवसाय के क्षेत्र में कठिनाइयां आती हैं।

भाइ‌यों ने भी उन्नति कर ली। एक भाई परेशान, स्वयं भाग्यवान, यात्राओं में लाभ, यात्राएँ व्यापार सम्बन्धी, मकान की अभिलाषा।

व्यवसावा नीच दृष्टि से दसवें भाव को देखने पर पिता तथा राज्य सुख में कमी रहती है। नौवीं दृष्टि से स्वराशि वाले दसवें भाव को देखने से आपस में अच्छा दोस्ताना सम्बंध बनता है। कुछ स्थितियों में खर्च भी बढ़ता है। परंतु जातक के पास धन का आगमन हो जाता है। वह दीर्घायु होता है।


गुरु चतुर्थ भाव में- मेष लग्न के चौथे भाव में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक को माता, भूमि तथा मकान आदि का अच्छा सुख मिलता है। इसकी पांचवीं दृष्टि द्वारा आठवें भाव को देखने से उसकी आयु में वृद्धि होती है। उसे कई पुरानी वस्तुओं का लाभ होता है।

मकान, जमीन, जायदाद, सवारी तथा पूर्ण सुख उच्च भवनों का निर्माण, धर्मशालाएँ, देवालय, कुछ जमीन बिक जाए, माता भी सुखी पर उम्र कुछ कम, राजयोग, ज्यों-ज्यों भवन बनवाएगा त्यों-त्यों फलेगा तथा सुख समृद्धि बढ़ेगी, मकान के उत्तर में आंगन की ओर धन गढ़ा है, भाग्योदय चार बार।

बृहस्पति द्वारा सातवीं मीच दृष्टि से दसवें भाव को देखने पर जातक को पिता का प्यार नहीं मिलता। नौवीं राशि वाले बारहवें भाव को देखने से अपने क्षेत्र के बाहर वालों से अच्छा सम्बंध बनता है। उसे धन का भी लाभ होता है।


गुरु पंचम भाव में- मेष लग्न के पांचवें भाव  में मित्र सूर्य की राशि पर स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। पांचवीं दृष्टि से नौवें भाव को देखने से उसका भाग्योदय होता है।

विद्यावारिधि, पिछले जन्म का ऋषि। लाभ अधिक, सन्तान शिक्षित, पुत्र सन्तति, पुत्र भाग्यवान्, धर्म-प्रिय, न्याय की शिक्षा ग्रहण करे, ज्यों-ज्यों शिक्षा प्राप्त करे त्यों-त्यों भाग्य फले, ज्यों-ज्यों पुत्र उत्पन्न हो, त्यों-त्यों उन्नति हो।

सातवीं दृष्टि से आमदनी के क्षेत्र में कुछ रुकावटें आती हैं। नौवीं मित्र दृष्टि द्वारा प्रथम भाव को देखने पर जातक का स्वास्थ्य उत्तम होता है। शरीर सुन्दर तथा सुडौल होता है। ऐसा व्यक्ति धनवान, विद्वान, धार्मिक प्रवृत्ति एवं आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होता है। उसका जीवन हमेशा सफल बना रहता है।

गुरु षष्ठम भाव में – मेष लग्न के छठे भाव  में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक को कुछ झंझटों के बाद सफलता मिलती है। पांचवीं नीच दृष्टि से दसवें भाव को देखने पर पारिवारिक समस्याओं में बढ़ोत्तरी होती है।

भाग्य में बाधा, यात्रा में चोरी, शत्रु तथा मुकद्दमों पर खर्च, रोगों पर खर्च, इधर साला बीमार हुआ उधर चाचा बीमार हुआ।

सातवीं मित्र दृष्टि द्वारा बारहवें भाव को देखने पर जातक को अधिक धन खर्च करना पड़ता है। उसे बाहरी कार्यों में भी सफलता मिलती है। नौवीं शत्रु दृष्टि से दूसरे भाव को देखने के कारण कुछ स्थितियों में परिवार में मतभेद हो जाता है। उसको धन कमाने तथा आजीविका चलाने में भी कठिनाइयां आती हैं।

गुरु सप्तम भाव में-मेष लग्न के सातवें भाव में शत्रु शुक्र की राशि में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक को नौकरी या व्यवसाय में कठिनाई आती है। स्त्री पक्ष भी कमजोर होता है। पांचवीं शत्रु दृष्टि से ग्यारहवें भाव को देखने के कारण आय के स्रोतों में व्यवधान पड़ता है।

जब से पत्नी आई है तब से भाग्य बढ़ता गया है। पत्नी ईश्वर-भक्त, तीर्थाटन वाली, पत्नी की बात माननी पड़े।

सातवी मित्र दुष्टि से मेष लग्न को देखने के कारण जातक का शरीर सुन्दर एवं प्रभावशाली होता है। नौवीं दृष्टि द्वारा तीसरे भाव को देखने से उसका पराक्रम तथा भाई-बहनों का प्यार बना रहता है।

गुरु अष्टम भाव में -मेष लग्न के आठवें भाव में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक को अपने दैनिक जीवन में धन की कमी महसूस होती है, लेकिन उसका शरीर स्वस्थ रहता है। कुछ पुरातत्व वस्तुओं से लाभ होता है। पांचवीं दृष्टि से अपनी राशि वाले बारहवें भाव को देखने पर उसे बाह्य साधनों या स्थानों से काफी सहयोग मिलता है। लेकिन इस काम में खर्च अधिक करना पड़ता है।

भाग्य में बाधा, मृत्यु भय, विदेश में उन्नति, पता के धन की हानि। साले को मृत्यु-तुल्य कष्ट, इधर चाचा को मृत्यु- मुल्य कष्ट।

बुध की सातवीं शत्रु दृष्टि दूसरे भाव पर पड़ने से जातक को धन का दुगुना लाभ होता है। परिवार में सभी कार्य भली-भांति सम्पन्न हो जाते हैं। नौवीं उच्च दृष्टि द्वारा चौथे भाव को देखने के कारण उसे माता से लाभ मिलता है। भूमि तथा भवन का सही उपभोग होता है।




गुरु नवम भाव में मेष लग्न के नौवें भाव में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक की प्रवृत्ति धार्मिक किस्म की हो जाती है। उसका भाग्योदय भी होता है। पांचवीं मित्र दृष्टि से इस लग्न को देखने से उसका स्वभाव अच्छा तथा शरीर सुन्दर व आकर्षक होता है।

महाभाग्यवान् योग, भाग्यशाली परिवार में जन्म,
यात्राओं में भाग्योदय, धन का लाभ, जीवन सुखी, दैवी शक्ति की पूर्ण सहायता, दूसरों को भी भाग्यवान् बना दे। मिट्टी पकड़े सोना हो। चाचा- ताऊ भी भाग्यशाली, परोपकार तथा दान में खर्च, भाग्योदय तीन बार

सातवीं मित्र दृष्टि के तीसरे भाव पर पड़ने से जातक के पराक्रम तथा भाई- बहन के प्यार में बढ़ोत्तरी होती है। कुल मिलाकर इस कुण्डली का जातक भाग्यशाली, धनी तथा सुन्दर बन जाता है।

गुरु दशम भाव में – मेष लग्न के दसवें भाव में शत्रु शनि की राशि पर स्थित नीच बृहस्पति के प्रभाव से जातक को कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पिता एवं व्यवसाय की हानि होती है। पांचवीं शत्रु दृष्टि से दूसरे भाव को देखने पर धन तथा परिवार में कमी आती है।

सरकार में उत्तम पद, मजिस्ट्रेट, बार-बार बदली, ऊँचे भवन बने, जमीन जायदाद प्राप्त, कुछ जमीन बिक जाए, मान पद प्रतिष्ठा, पिता सुखी।

सातवीं उच्च दृष्टि द्वारा चौथे भाव को देखने से जातक को माता, जमीन तथा भवन आदि का सुख मिलता है। दसवीं मित्र दृष्टि से छठवें भाव को देखने के कारण विरोधियों पर विजय पाने में सफलता मिलती है।


गुरु एकादश भाव में -मेष लग्न के ग्यारहवें भाव (कुण्डली संख्या-60) में स्थित बृहस्पति के फलादेश से जातक कुछ परेशान रहता है। सारे लाभ मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। बृहस्पति द्वारा पांचवीं मित्र दृष्टि से तीसरे भाव को देखने से जातक को आंशिक सफलता मिलती है।

व्यापार में अनेक लाभ, जवाहरात की दुकान,प्रतिष्ठा, दिन-दूनी उन्नति, चाचा को नया व्यापार, अगले जन्म में ड्राइवर बनेगा तथा लाभ कम रहेगा।

सातवीं दृष्टि से पांचवें भाव को देखने के कारण जातक शिक्षा, बुद्धि और सन्तान के क्षेत्र में आश्वस्त होता है। नौवीं शत्रु दृष्टि से सातवें भाव को देखने पर नौकरी तथा व्यवसाय के क्षेत्र में अल्प लाभ मिलता है। कठिन परिश्रम करने के बावजूद वह पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाता।


गुरु द्वादश भाव में – मेष लग्न के बारहवें भाव  में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक का खर्च अधिक बढ़ जाता है। लेकिन उसे बाहरी संसाधनों से लाभ भी मिलता है। इसमें पांचवीं मित्र दृष्टि द्वारा बृहस्पति चौथे भाव को देखता है, इससे व्यक्ति को माता, भूमि तथा भवन का सुख मिलता है।

अपने क्षेत्र का प्रधान, जवानी के बाद उन्नति, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, शत्रु नुकसान न करें, सौम्य खर्च, चाचा को उन्नति, पिछले जन्म में देवताओं का अपमान किया है, जिसके कारण अब देवताओं की

सातवीं मित्र दृष्टि से छठवें भाव को देखने के कारण जातक अपनी कार्य- कुशलता द्वारा शत्रु पक्ष में विजय हासिल कर लेता है। नौवीं मित्र दृष्टि से आठवे भाव को देखने पर प्राचीन भंडारों का लाभ मिलता है। वह दीर्घायु होता है ऐसी ग्रह स्थिति वाला व्यक्ति अपार अवरोधों के बावजूद अपना जीवन सफल बनाता है। उसका दिमाग तेज तथा शरीर स्वस्थ होने से वह कहीं भी असफल नहीं होता।



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