११फरवरी २०२४ रविवार भाग -1
ओम् आब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम

आ राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो
जायताम् दोग्ध्री धेनुर्वोढ़ाऽनडुवानाशुः सप्तिः
पुरन्धिर्योषा जिष्णु रथेष्ठाः सभेयो युवास्य
यजमानस्य वीरो जायताम् निकामे निकामे
नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः
पच्यन्ताम् योगक्षेमो नः कल्पताम्।
जनतानामा न्यूज़ भुवन जोशी अल्मोड़ा उत्तराखण्ड
ज्योतिषचार्य कौशल जोशी (शास्त्री) प्राचीन “कुमायूँ की काशी” माला सोमेश्वर
मेष लग्न जो कि अग्नि तत्व प्रधान एवं चर राशि होने के कारण इस लग्न या राशि के जातक दृढ निश्चयी,स्फूर्तिवान,व्यवहार कुशल, आत्मविश्वासी तथा स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम होता है।
इनमे नेतृत्व की भावना / क्षमता शक्ति प्रबल होती है।मेष जातक वैज्ञानिक चिंतन अधिक पसंद करते है। मेष लग्न या राशि के लोग किसी दुसरे की आधीनता या मार्गदर्शन पसंद नहीं करते है। नवीन एवं मौलिक विचार उत्पन्न करने में इनकी बुद्धि विशेष कुशल होती है।ये जीवन में नई-नई योजना बनाते रहते है।इनके भीतर एवं बाहरी भाव प्रायः एक समान रहते है।इनमे सामने वाले व्यक्ति के मनोभावों को समझलेने की अपूर्व शक्ति जन्मजात होती है।एवं संघर्ष की भावना प्रबल होती है, ये कार्य पूर्ण होने तक हार नही मानते।ये जीवन में निजी पुरुषार्थ एवं उद्धम के द्वारा लाभ एवं उन्नति प्राप्त कर लेते है।
मेष राशि एवं लग्न के जातको की शिक्षा व्यवसाय-कैरियर,आर्थिक स्तिथि एवं
स्वास्थ्य – रोग।
मेष राशि अथवा लग्न के जातक क्रियात्मक (प्रैक्टिकल) अधिक होते है।अतः ये ऐसे व्यवसाय में अधिक सफल हो पाते है जिसमे उद्यम एवं शारीरिक श्रम की विशेष आवश्यकता हो। ये जातक खेल-कूद, दन्त चिकित्सा, कैमिस्ट, फ़ौज, सेनाध्यक्ष, पुलिस, बिजली एवं इलेक्ट्रॉनिक कार्य,ज्यूलर्स, बैकरी, मिठाई, आदि।
यदि मंगल/गुरु आदि ग्रहो का शुभ सम्बन्ध हो तो वैद्य, चिकित्सा क्षेत्र, सिनेमा, संगीत, कम्प्यूटर, मशीनरी (इंजीनिरिंग), भूमि-जायदाद, क्रय-विक्रय, विदेशी सम्बन्ध, कम्पनी प्रतिनिधित्त्व, सरकारी क्षेत्रो से सम्बंधित कार्यो में सफलता मिलती है।
सूर्य, चंद्र, गुरु, एवं शनि शुभ होने की स्तिथि में राजनीति, प्रशासनिक आर्थिक कार्यो में भी विशेष सफलता मिलती है।
यदि इन जातको की कुंडली में चंद्र/मंगल/सूर्य अशुभ हों तो अस्थिर प्रकृति, परिवर्तनशील स्वाभाव, तथा शीघ्र ही उत्तेजित होकर प्रचंड रूप धारण करलेने का स्वाभाव हो जाता है।
चंद्र/मंगल यदि नीच राशिस्थ अथवा शत्रु क्षेत्री या शत्रु ग्रहो से युत हों तो अत्यधिक क्रोधावेश में कई बार अपनी बहुत भारी हानि भी करवा बैठते है।
कुंडली में बुध/मंगल यदि अशुभ हो तो भाई बहनो का सुख बहुत कम मिलता है।
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ज्योतिषाचार्य कौशल जोशी शास्त्री
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