दशानन कृत ज्योतिष के आज के अंक में वृष लग्न में केतु के द्वादश भावों के शुभ अशुभ फल
28/जुलाई /२०२४ • JUL Y 28, 2024

विक्रम संवत २०८१, शक संवत १९४६
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम् ॥
वृष लग्न का केतु आपके जीवन मे क्या प्रभाव डाल सकता है जानिए
वृष लग्न में केतु की बारह स्थितियों का अलग-अलग प्रभाव होता है
जनतानामा न्यूज़ भुवन जोशी अल्मोड़ा उत्तराखण्ड
ज्योतिषचार्य कौशल जोशी (शास्त्री) प्राचीन “कुमायूँ की काशी” माला सोमेश्वर
केतु प्रथम भाव में – वृष लग्न में केतु के पहले भाव के फलादेश एक के शरीर में कष्ट होता है तथा सौंदर्य सम्बंधी विकार आता है। धन का अभाव रहता है। मन स्थिर नहीं रहता, जिससे चिन्ताएं उत्पन्न होने लगती हैं।
खर्च के सम्बन्ध में बड़े-बड़े भीषण संकट, अन्य स्थानों में क्लेश, बाहरी सम्बन्ध में गुप्त योजनाए। हठधर्मी, साहसी। पिछले जन्म में चोर था, जिनकी चोरी की थी वे सन्तान हैं तथा मित्र हैं, वे ही धन क्षय करवा रहे हैं।
ऐसा जातक कठिन परिश्रमी बन जाता है जिससे उसे अच्छा लाभ मिलता है। उसकी प्रशंसा करते हैं। शरीर में कष्ट अथवा चोट के कारण घाव का निशान जाता है जिससे उसके सौंदर्य में कमी आती है।
केतु द्वितीय भाव में – वृष लग्न में केतु के दूसरे भाव में अपने शत्रु शनि की राशि पर स्थित नीच दृष्टि पड़ने से जातक को परिवार की चिन्ता सताए रखती । वह हर समय किसी न किसी घटना के बारे में सोचता रहता है। अतः वह बरौल किस्म का हो जाता है।
मस्तक में कमी, अशान्ति, पुरुषार्थी, अन्ध विश्वासी। स्वार्थसिद्धि में बहादुर। वृद्धावस्था में सँभल जाना।
ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए कई हथकंडे पनाता है। इसमें उसे कुछ सफलता मिलती है तथा धन लाभ भी होता है।
केतु तृतीय भाव में – वृष लग्न के तीसरे भाव में स्थित केतु के प्रभाव से जातक को अपना ही काम पसन्द नहीं आता। वह एक बुत-सा बनकर रह जाता है। भाई-बहनों से भी उसे कोई विशेष लाभ नहीं मिलता। उसे निरंतर कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
धन में व्यापार हानि। धन का बँटवारा, धन की कमी। अशान्त तथा वेदना सहने वाला, अनुचित कर्म। धन के विषय में आघात ।
ऐसे जातक को चाहे कितना भी कह क्यों न हो, वह अपने चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आने देता। सभी कठिनाइयों का डटकर सामना करता है। इस प्रकार किए गए कार्य से उसे अच्छी सफलता मिलती है। लोग उसका सम्मान करते हैं। वह अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करता है।
केतु चतुर्थ भाव में – वृष लग्न में केतु के चौथे भाव में स्थित होने से जातक को माता, भूमि, भवन तथा पारिवारिक सुख के क्षेत्र में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। धन-मार्ग अवरुद्ध होता है।
पुरुषार्थों से उन्नति के लिए दौड़-धूप। बहन- भाइयों से सम्बन्ध विच्छेद। संघातिक प्रहारों पर भी साहस न छोड़ना, अन्त में उत्तरोत्तर वृद्धि, सफलता, परिश्रमी। धनवान, राजयोग।
ऐसा जातक कम काम करने तथा अधिक फायदा पाने के लिए कई गोपनीय चालें चलता है। कहीं-कहीं उसे कठिन कार्य भी करने पड़ते हैं। कुछ लोगों को अपना वतन तक छोड़ना पड़ता है, जिससे उन्हें आंशिक लाभ मिलता है।
केतु पंचम भाव में – वृष लग्न के पांचवें भाव में मित्र बुध की राशि पर स्थित केतु के फलादेश से जातक सन्तान के क्षेत्र में बहुत कष्ट झेलता है। धन कमाने के लिए कठिन से कठिन कार्य करने पड़ते हैं, जिसके बावजूद उसे पर्याप्त लाभ नहीं मिलता। वह तन, मन, धन-तीनों से दुःखी रहता है।
माता को आय कम। जन्म भूमि से वियोग। जायदाद में कमी, क्लेश। सुख की कमी, सवारी के नीचे दब जाए, अन्त में सुख ।
ऐसा जातक सन्तोषी स्वभाव का साहसी, संयमी एवं धैर्यवान होता है। उसे चाहे कितना भी कष्ट क्यों न हो, वह अपने दुःखों को प्रकट नहीं होने देता। हर समय वह उच्च एवं स्वच्छ विचार रखता है।
केतु षष्ठम भाव में – वृष लग्न के छठवें भाव में अपने मित्र शुक्र की राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक बड़ा बलवान होता है। उसका शत्रुओं पर विशेष प्रभाव पड़ता है। अपने पुरुषार्थ से वह अपने सभी विघ्न बाधाओं को आसानी से दूर कर लेता है।
मूर्ख सन्तान वह भी विलम्ब से। शिक्षा की कमी, बातचीत में कमजोरी। सन्तान में मूर्खता। गुप्त विवेकी, सत्य-असत्य की परवाह न करते हुए दृढ़ संकल्प।
ऐसा जातक बहुत धनी तथा चतुर होने के साथ-साथ धैर्यवान एवं संयमी भी होता है। किसी भी प्रकार के अभाव में वह हिम्मत नहीं हारता तथा अधिक मिल जाने पर भी घमण्ड नहीं करता।
केतु सप्तम भाव में -वृष लग्न में केतु के सातवें भाव में स्थित होने से जातक को स्त्री पक्ष द्वारा कष्ट तथा हानि का शिकार होना पड़ता है। कई लोगों को गुर्दे सम्बंधी रोग भी हो जाते हैं। व्यापार तथा घरेलू कार्यों में उसे कई किस्म की असफलताएं मिलती हैं।
शत्रु से बहादुरी, विपक्षियों पर प्रभाव। रोगों तथा दुःखों की परवाह न करे। ननसाल दुखी। साहस तथा युक्तियों से महान् कार्य पूर्ण करना, स्वार्थसिद्धि में दृढ़ता। असन्तोष, अपने मार्ग को साफ करने के लिए अन्धाधुन्ध शक्ति का प्रयोग।
ऐसा जातक बड़े हिम्मत तथा धैर्य से काम लेता है। अनेक कष्टों एवं मुसीबतों को वह चुपचाप झेल जाता है। किसी पर भी अपना दुःख प्रकट नहीं करता। इससे लोग उसका मान-सम्मान करते हैं।
केतु अष्टम भाव में – वृष लग्न में केतु के आठवें भाव के फलादेश से जातक की आयु बढ़ती है। कुछ प्राचीन वस्तुओं का लाभ भी मिलता है। वह अपना जीवन सफल बनाने के लिए कठिन से कठिन परिश्रम करता है जिसके द्वारा उसके आय स्रोत में वृद्धि होती है। वह शानो-शौकत से जीवन-यापन करता है।
पत्नी देह से दुखी। दैनिक व्यवस्था में संकट। इन्द्रिय में रोग। आन्तरिक धैर्य। रोजगारों में भीषण आघात फिर भी उन्नति से धन प्राप्ति। धन का पत्नी विषय के में अपव्यय।
ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक बड़ा सहनशील, साहसी, गुप्त युक्ति-सम्पन्न तथा उच्च विचारों का होता है। धनी होने के साथ-साथ वह खूब नाम भी कमाता है।
केतु नवम भाव में – वृष लग्न के नौवें भाव में मित्र शनि की राशि पर स्थित केतु के प्रभाव से जातक को कठिन परिश्रम द्वारा अपना भाग्य बदलना पड़ता है। इससे उसे अपार सफलता मिलती है। ऐसा व्यक्ति धर्म-कर्म में पूर्ण विश्वास रखता है, फिर भी वह ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित नहीं होता।
आयु की वृद्धि, धन लाभ। दूर की यात्राओं से अधिक लाभ। दिनचर्या में मस्ती का आनन्द। आडम्बरयुक्त। गहरी चिन्ताएँ।
ऐसे ग्रह कुण्डली पाला जातक अन्धविश्वासी एवं रूढ़िवादी नहीं होता। यह कर्म तथा परिश्रम पर अधिक विश्वास करता है। दृढ़ निश्चयी होने से वह अपना कार्य सफलतापूर्वक कर लेता है।
केतु दशम भाव में – वृष लग्न के दसवें भाव में स्थित केतु के फलादेश से जातक को परिवार के सदस्यों द्वारा हानि का योग बनता है। पिता तथा राज्य द्वारा भी कोई विशेष लाभ नहीं मिलता।
प्राकृतिक परेशानियाँ, भाग्योदय में रुकावटें । धर्म में हानि, सुयश में कमी, ईश्वर में अविश्वास। किसी सिद्धि के लिए हठधर्मी, असन्तोषी। घोर परिश्रम। अन्त में उत्तम भाग्य।
ऐसा जातक जब कठिन परिश्रम करता है, तभी उसे कुछ सफलता तथा धन लाभ मिलता है। उसके रहन-सहन से यही पता चलता है कि वह खूब पैसे वाला है, लेकिन असलियत का सिर्फ उसे ही पता रहता है।
केतु एकादश भाव में -वृष लग्न में केतु के ग्यारहवें भाव में अपने शत्रु बृहस्पति की राशि पर स्थित होने से जातक को अपने आय के साधनों में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उसके जीवन में निरंतर उतार-चढ़ाव बना ही रहता है।
उन्नति के लिए महान् परिश्रम, महत्त्वाकांक्षी । पिता दुखी, उम्र कम। नौकरी में उत्थान-पतन। गुप्त शक्ति तथा धैर्य से कार्य करने वाला। मान प्रतिष्ठा के मामले में घोर संकट, हठधर्मी। अन्त में उन्नति।
कई संकटों के बाद जातक के ग्रह योग ऐसे बनते हैं कि वह कुछ राहत महसूस करता है। धीरे-धीरे उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होने लगती है। ऐसा व्यक्ति कभी भी असफल नहीं होता। उसका कारोबार भी अच्छा चलता है।
केतु द्वादश भाव में –वृष लग्न में केतु के बारहवें भाव में अपने शत्रु मंगल की राशि पर स्थित होने से जातक को परिवार के भरण-पोषण में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जहां पर भी आय के स्रोत होते हैं, वहीं पर रुकावटें आती रहती हैं।
महत्त्वाकांक्षाएँ पूर्ण होंगी। अतीव धन प्राप्त। महान् परिश्रमी, बड़प्पन। अनुचित युक्तियाँ, लेन-देन, स्वार्थी। मुफ्त का सा लाभ प्राप्त, अधिक नफा खाने वाला। सुन्दर वस्तुओं की कमी। श्रेष्ठ कारोबार। अगले जन्म में ब्राह्मण के छोटे कुल में जन्म लेगा फिर भी मकान पर झंडा लगा रहेगा।
ऐसे जातक के समक्ष बाहरी साधनों से भी कई प्रकार की कठिनाइयों आती हैं। उसका समस्त जीवन बड़ी कठिन परिस्थितियों में बीतता है। लेकिन इन समस्याओं से वह परिश्रमी तथा हिम्मती हो जाता है।
पूर्व में प्रसारित सप्ताहिक अंकों में आपने पढ़ा मेष लग्न में नवों ग्रहों के प्रत्येक लग्न के द्वादश भावों में मिलने वाले फल के बारे में
दशासन कृत ज्योतिष में आजकल प्रसारित अंकों में वृष लग्न में नवों ग्रहों के द्वादश भावों पर पढ़ने वाले प्रभावों की जानकारी
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