दशानन कृत ज्योतिष के आज के अंक में वृष लग्न में मंगल के द्वादश भावों के शुभ अशुभ फल
05/मई/२०२४ • MAY 05, 2024

विक्रम संवत २०८१, शक संवत १९४६
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम् ॥
वृष लग्न का मंगल आपके जीवन मे क्या प्रभाव डाल सकता है जानिए
वृष लग्न में मंगल की बारह स्थितियों का अलग-अलग प्रभाव होता है।
मंगल प्रथम भाव में – वृष लग्न के पहले भाव में अपने मित्र शुक्र को राशि पर स्थित सप्तमेश तथा व्ययेश मंगल के प्रभाव से जातक को बाहरी क्षेत्रों से लाभ होता है, लेकिन उसे अनेक शारीरिक कष्ट जैसे- रक्त की कमी, कमजोरी तथा धातु क्षीणता आदि होते हैं।
क्रोधी, हथियार वाला, चोर-डाकुओं से मेल, जेल, पैतृक सम्पत्ति का ह्रास, पत्नी पर खर्च, पत्नी से न बने, मंगली, परिश्रमी, पुलिस नुकसान करे, पिछले जन्म में अपनी पत्नी को बहुत तंग करता था इस कारण अब पत्नी तंग करती है।
मंगल की चौथी मित्र दृष्टि द्वारा चतुर्थ भाव को देखने पर जातक को भूमि तथा मकान का पूरा लाभ नहीं मिलता। सातवीं दृष्टि से स्वक्षेत्रीय सातवें भाव को देखने पर व्यवसाय तथा स्त्री पक्ष से मदद मिलती है। आठवीं मित्र दृष्टि से आयु सम्बंधी कठिनाई होती है।
मंगल द्वितीय भाव में – वृष लग्न में मंगल के दूसरे भाव (कुण्डली संख्या-136) के फलादेश से जातक के आय स्रोतों में अड़चनें आती हैं। चौथी मित्र दृष्टि से उसे शिक्षा का कम लाभ मिलता है। इस ग्रह योग में संतान पक्ष में भी कठिनाई होती है।
पत्नी ने विवाह से पहले इसे देख लिया। क्रोधी, देह कृश, माता को चोट, पत्नी से प्रेम, मंगली, सवारी को तोड़ कर बेचने वाला, बाग कटवा दे, मकान की असुविधा, अशान्त, दौड़-धूप वाला, एक्सीडेन्ट।
सातवीं मित्र दृष्टि द्वारा आठवें स्थान को देखने पर जातक को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। आयु में कमी आती है तथा प्राचीन वस्तुओं द्वारा हानि का योग बनता है। आठवीं दृष्टि के प्रभाव से कुछ राहत मिलती है तथा भाग्योदय होता है। इससे व्यक्ति भाग्यशाली तथा धनी होता है।
मंगल तृतीय भाव में -वृष लग्न में मंगल के तीसरे भाव के प्रभाव से जातक को भाई-बहनों द्वारा असहनीय कष्ट झेलना पड़ता है। व्यवसाय आदि क्षेत्रों में काफी हानि का योग होता है। चौथी शत्रु दृष्टि द्वारा छठवें भाव के प्रभाव से शत्रु पक्ष कुछ कमजोर होता है।
धन की हानि, पत्नी भी धन की हानि करे, पत्नी के पिता ने धन लेकर विवाह किया, छोटा पुत्र कृश, विद्या में कमी, आठवें स्थान में शुक्र हो तो ऐक्सीडेन्ट, पिता की सम्पत्ति झगड़ों में नष्ट।
मंगल की सातवीं उच्च दृष्टि होने से जातक का भाग्योदय होता है तथा धर्म- कर्म में विश्वांस बढ़ता है। आठवीं शत्रु दृष्टि द्वारा दसवें भावु को देखने से उसे अपने पिता तथा राज्य पक्ष से कई नुकसान उठाना पड़ता है। इससे वह अपने उद्देश्य में डगमगा जाता है।
मंगल चतुर्थ भाव में –वृष लग्न में मंगल के चौथे भाव में मित्र सूर्य की राशि पर स्थित होने से जातक को माता तथा अचल सम्पत्ति की हानि होती है। घर में व्यवधान पैदा होता है। केवल बाहरी साधनों से कुछ फायदा मिलता है। अधिक खर्च का भी योग बनता है।
पत्नी देवर को घुड़क देती है, देवर दूर-दूर रहता है, बन्धु-वियोग, भाग्यवान्, यात्रा में लाभ, शत्रु-मर्दन। पराक्रमी, प्रयत्नशील।
सातवीं शत्रु दृष्टि द्वारा दसवें भाव को देखने से जातक को पिता से काफी कष्ट उठाना पड़ता है। आठवीं दृष्टि द्वारा ग्यारहवें भाव को देखने पर उसकी आय में वृद्धि होती है। बाहर के साधनों से कुछ ही लाभ मिलता है।
मंगल पंचम भाव में-वृष लग्न के पांचवें भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता नहीं मिलती। संतान पक्ष से भी हानि उठानी पड़ती है। व्यवसाय क्षेत्र में कुछ ही सफलता मिलती है। स्त्री द्वारा पूर्ण सहयोग एवं धन लाभ प्राप्त होता है। बाहरी संसाधनों तथा स्थानों से कुछ सफलता मिलती है, लेकिन खर्च अधिक बढ़ जाता है।
मकान-दुकान सवारी आदि सब फूंक दी, माता को कष्ट, मामूली नौकरी, मंगल, पत्नी सास को मारे, पत्नी ने मकान बिकवाया, रोजी में कठिनाई, विवाह से पहले पत्नी दूर से मकान को देख गई थी। राज में सम्मान। जन्म स्थान त्यागकर अन्यत्र रहे।
सातवीं शत्रु दृष्टि के दसवें भाव के फलादेश से जातक को पिता तथा राज्य पक्ष में हानि उठानी पड़ती है। आठवीं मित्र दृष्टि होने से आय के साधनों में वृद्धि होती है। उसे चल-अचल सम्पत्ति का लाभ मिलता है।
मंगल षष्ठम भाव में -वृष लग्न के छठवें भाव में शत्रु शुक्र की राशि पर स्थित व्ययेश तथा सप्तमेश मंगल के प्रभाव से जातक को व्यवसाय में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शत्रु पक्ष में उसका प्रभाव बराबर बना रहता है। चौथी दृष्टि उच्च होने से उसका भाग्योदय होता है तथा उसकी प्रवृत्ति धार्मिक किस्म की बनती चली जाती है।
अधिक न पढ़ सका। सन्तान हानि, सन्तान के विचार न मिलें, छोटे पुत्र को कष्ट, तीन गर्भ गिर जाएँ। वाक् चतुर, खर्च अधिक।
मंगल की सातवीं दृष्टि से अपनी ही राशि वाले बारहवें भाव के फलादेश से जातक का खर्च अधिक बढ़ता है, मगर बाहरी क्षेत्रों से लाभ मिलता है। आठवीं शत्रु दृष्टि द्वारा वह धातु दुर्बलता का शिकार होता है।
मंगल सप्तम भाव में – वृष लग्न में मंगल के सातवें भाव के फलादेश से जातक का व्यवसाय क्षेत्र मजबूत होने पर भी कुछ कमियां बनी रहती हैं। बाहरी क्षेत्रों से कुछ लाभ मिलता है। चौथी शत्रु दृष्टि द्वारा दसवें भाव को देखने से पिता तथा राज्य के क्षेत्र में कुछ कठिनाइयां आती हैं, जिससे आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है।
मुकदमों में खर्च, लड़ाई-झगड़ों में विजय, झगड़ों में स्वयं को चोट लग जाए, दाएँ पैर में चोट, मामा को चोट, पत्नी शत्रुओं से घिर जाए, वस्ति का ऑपरेशन।
मंगल की सातवीं शत्रु दृष्टि से जातक को शारीरिक कमजोरी का शिकार होना पड़ता है। कई रोग शरीर में घुस जाते हैं। आठवीं मित्र दृष्टि द्वारा व्यक्ति को धन का अभाव होने लगता है। कितनी ही कोशिशों के बाद भी वह नहीं पनप पाता। इससे उसका पारिवारिक जीवन प्रभावित होता है।
मंगल अष्टम भाव में -वृष लग्न में मंगल के आठवें भाव के फलादेश से जातक को अपने कारोबार, स्त्री तथा आयु सम्बंधी अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं। चौथी मित्र दृष्टि द्वारा दसवें भाव को देखने से बाहरी क्षेत्रों से धन लाभ होता है।
मंगली, पत्नी क्रोधी, हठी, पति-पत्नी झगड़ें, पत्नी का पलड़ा भारी, पत्नी झगड़े में आगे, स्वयं को चोट, मार-पीट, रोजी हर सूरत बनी रहे। पत्नी की कृपा से भाग्योदय, तीन बार हथियार वाले विभाग में नौकरी।
मंगल की सातवीं शत्रु दृष्टि द्वारा दूसरे भाव को देखने के कारण जातक को धन कमाने में कठिनाई होती है। आठवीं नीच दृष्टि द्वारा तीसरे भाव को देखने पर ऐसे व्यक्ति के भाई-बहनों के सुख-सहयोग में कमी आती है। कभी-कभी उसका सामाजिक बहिष्कार भी होने लगता है।
मंगल नवम भाव में -वृष लग्न में मंगल के नौवें भाव में स्थित होने से जातक को भाग्य से अनेकानेक लाभ प्राप्त होते हैं। स्त्री पक्ष द्वारा भी पूर्ण सहयोग मिलता है। धर्म-कर्म में उसका विश्वास बढ़ता है। चौथी दृष्टि द्वारा अपनी ही राशि वाले बारहवें भाव को देखने पर उसका खर्च अधिक होता है। लेकिन बाहरी एवं अनजान लोगों से लाभ भी मिलता है।
पत्नी को कष्ट परन्तु बच जाए। पत्नी घर से दूर रहने को बाध्य करे, ससुराल की दशा कमजोर, फिजूल खर्च कम, नाभि के नीचे ऑपरेशन, न्यून आयु, पिता का धन बर्बाद, मंगली, जंघा में चोट।
सातवीं नीच दृष्टि द्वारा तीसरे भाव को देखने के कारण जातक के भाई-बहन के सुख-सहयोग में कमी आती है। आठवीं मित्र दृष्टि से चौथे भाव को देखने पर घर में कलह शुरू हो जाता है तथा भूमि-मकान का उचित लाभ नहीं मिलता।
मंगल दशम भाव में – वृष लग्न में मंगल के दसवें भाव के प्रभाव से जातक को पिता तथा राज्य पक्ष से कुछ कठिनाइयां होती हैं। लेकिन कुछ बाह्य संसाधनों द्वारा व्यवसाय आदि में महत्वपूर्ण लाभ होता है। चौथी दृष्टि के प्रभाव से उसे भयंकर रोगों का सामना करना पड़ता है।
पत्नी भाग्यशालिनी, पत्नी के आते ही भाग्य खुल गया कुछ बातों में बाधा, यात्रा में खर्च तथा नुकसान, भाइयों से लापरवाह, पुरुषार्थ में कमजोरी, दैवशक्ति की प्रबल सहायता, दुर्गाजी को सिद्धि। एक अदृश्य शक्ति नुकसान करने के लिए ही खड़ी रहे।
सातवीं मित्र दृष्टि द्वारा चौथे भाव को देखने से जातक को माता, भूमि तथा भवन का पूरा लाभ नहीं मिलता। आठवीं मित्र दृष्टि से पांचवें भाव को देखने पर सन्तान से अनबन बनी रहती है, लेकिन कुछ जगहों पर सम्मान भी मिलता है।
मंगल एकादश भाव में :- वृष लग्न में मंगल के ग्यारहवें भाव में मित्र बृहस्पति की राशि पर स्थित होने से जातक की आय में निरन्तर वृद्धि होती है। बाहरी लोगों तथा स्त्री पक्ष से भी कुछ न कुछ लाभ मिलता रहता है। चौथी शत्रु दृष्टि द्वारा दूसरे भाव को देखने के कारण धन कमाने में कुछ कठिनाइयां होती हैं।
मामूली नौकरी, पत्नी को भी नौकरी मिल सकती है। नौकरी छूट जाए, विशेष खर्च, पत्नी श्वसुर की मामूली सेवा करे, सास की आज्ञा माने। परिश्रमी, पुलिस में नौकरी।
मंगल की सातवीं शत्रु दृष्टि के प्रभाव से जातक की शिक्षा अधूरी रहती है। सन्तान में रुकावटें होने से वह परेशान रहता है। आठवीं समान दृष्टि से छठवें भाव को देखने के कारण शत्रु पक्ष पर श्रेष्ठ प्रभाव बना रहता है। ऐसी ग्रह स्थिति वाला व्यक्ति बहुत तेज बुद्धि का होने के साथ-साथ मेहनती भी होता है।
मंगल द्वादश भाव में –वृष लग्न में मंगल के बारहवें भाव में स्वराशि पर स्थित होने से जातक को बाहरी स्थानों से नई प्रेरणा मिलती है, परंतु खर्च अधिक रहता है। मंगल के सप्तमेश होने के कारण उसका व्यवसाय अच्छा चलता है। चौथी नीच दृष्टि होने से भाई-बहनों के सुख-सहयोग में कमी आती है।
पत्नी कहती है कि व्यापार करो और सुख भोगो, व्यापार कहता है धन उधार लेकर लगा दो, उत्तम लाभ, पत्नी के नाम पर कार्य, सन्तान और पत्नी को कुछ न समझे, पत्नी बड़े बेटे की तरफदारी करे, फौज या पुलिस के ठेके, अगले जन्म में शिकारी बनेगा तथा मछलियों का व्यापार करेगा।
मंगल की सातवीं दृष्टि द्वारा छठवें भाव को देखने से जातक की अपने शत्रुओं पर विजय होती है। आठवीं दृष्टि से सातवें भाव को देखने पर स्त्री से सम्बंध बिगड़ जाते हैं तथा व्यवसाय में कमी बनी रहती है।
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