दशानन कृत ज्योतिष के आज के अंक में वृष लग्न में शुक्र के द्वादश भावों के शुभ अशुभ फल
26/मई/२०२४ • MAY 26, 2024

विक्रम संवत २०८१, शक संवत १९४६
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम् ॥
वृष लग्न का शुक्र आपके जीवन मे क्या प्रभाव डाल सकता है जानिए
वृष लग्न में शुक्र की बारह स्थितियों का अलग-अलग प्रभाव होता है
जनतानामा न्यूज़ भुवन जोशी अल्मोड़ा उत्तराखण्ड
ज्योतिषचार्य कौशल जोशी (शास्त्री) प्राचीन “कुमायूँ की काशी” माला सोमेश्वर

शुक्र प्रथम भाव में – वृष लग्न में शुक्र के पहले भाव में स्थित होने से जातक स्वस्थ तथा सुन्दर होता है। उसके आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है। उसे अपने शत्रुओं पर अंकुश लगाने में सफलता मिलती है। उसका अपना एक विशेष अन्दाज होता है। कुछ ग्रह स्थितिवश उसे शारीरिक कष्टों का शिकार होना पड़ता है।
सुन्दरता तथा कान्ति की कमी, वीर्य पतन । जीवन भर खर्च को न सँभाल सके, देह कृश। ननसाल गरीब, शत्रु का नुकसान। चतुरता में कमी। पिछले जन्म में माता का सारा धन हड़प गया इस कारण अब जीवन भर खर्च है तथा एक पैर अदालत में रहता है।
शुक्र की सातवीं मित्र दृष्टि के सातवें भाव के गोचर प्रभाव से जातक का व्यापार क्षेत्र बढ़ता है तथा स्त्री द्वारा लाभ मिलता है। हर प्रकार से सम्पन्न होने के कारण वह अपना सारा जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करता है।
शुक्र द्वितीय भाव में – वृष लग्न में शुक्र के दूसरे भाव में स्थित मित्र बृहस्पत्ति तथा बुध के प्रभाव से जातक अपने प्रयास से धन कमाने में सफल होता है। उसका परिवार विकसित होता है। लेकिन ग्रह स्थिति के योग से कुछ समय के लिए उसे भयंकर शारीरिक कष्ट झेलना पड़ता है।
बहुत सुन्दर, गोरा, हृष्ट-पुष्ट, प्रवीण, चंचल नेत्र, जिससे झगड़ा हो जाए उसी को मित्र बना ले। ठाठ से रहे, स्वच्छता, आत्माभिमानी, पत्नी को प्रसन्न रखने वाला, दृढ़ संकल्प, कामातुर, जल्दबाजी, शरीर में दैवी शक्ति का वास।
शुक्र की सातवीं शत्रु दृष्टि के प्रभाव से इस गोचर कुण्डली से जातक को कई प्रकार के कष्ट मिलते हैं। आयु में कमी बनी रहती है तथा कुछ प्राचीन वस्तुओं की हानि का योग होता है। ऐसा व्यक्ति अपने शत्रुओं पर भारी पड़ता है।
शुक्र तृतीय भाव में – वृष लग्न में शुक्र के तीसरे भाव में स्थित होने से जातक एक महान व्यक्ति के रूप में उभरता है। उसके रहन-सहन तथा प्रभाव से सभी लोग उसका आदर करते हैं। मगर ग्रह योग के स्थितिवश उसे अपने भाई- बहनों द्वारा काफी हानि होती है।
पैतृक सम्पत्ति बड़े झगड़े से प्राप्त हो, अधिक प्राप्ति की बराबर चेष्टा करे। कुछ भाग से मामा भी लाभ उठा ले। धन खर्च करके शत्रुओं पर विजय, मृत्यु से लड़ता रहे। धनवान । साहूकारा।
शुक्र की सातवीं मित्र दृष्टि द्वारा नौवें भाव को देखने से जातक का धार्मिक कार्यों की तरफ ज्यादा रुझान होता है। उसका मन शान्त रहता है और भाग्योदय होता
है। यह परिश्रमी तथा होशियार होता है। कठिन परिश्रम करने से यह सुखी ए सम्मन्न गृहस्थ जीवन-यापन करता है।
शुक्र चतुर्थ भाव में – वृष लग्न के चौथे भाव में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक को माता के सुख से वंचित रहना पड़ता है। उसे जमीन-जायदाद का से सुख नहीं मिलता। घर के सदस्यों से कोई लाभ नहीं होता। लेकिन ग्रह योग के बदलने से सुख-साधनों में वृद्धि होने लगती है। शत्रु पक्ष पर सफलता मिलती है।
परिश्रमी, पुरुषार्थी। भाई-बहन सुन्दर, उनसे प्यार, एक भाई शत्रुवत् व्यवहार करे। महान् आत्मबल। ननसाल सुखी, प्रत्येक कार्य में विजयी, भाग्यवान्।
शुक्र की सातवीं मित्र दृष्टि होने से जातक को पिता तथा व्यवसाय द्वारा आशा के अनुकूल लाभ प्राप्त होता है। इससे उसका जीवन स्तर सुधरने लगता है। यह मान-प्रतिष्ठा पूर्वक समाज में जीवन व्यतीत करता है
शुक्र पंचम भाव में – वृष लग्न में शुक्र के पांचवें भाव में नीच दृष्टि के प्रभाव से जातक हमेशा कठिनाइयों से घिरा रहता है। उसका शिक्षा स्तर निम्न किस्म का होता है। वह अपने शत्रुओं पर भली-भांति सफलता हासिल कर लेता है।
माँ से कहता है कि पहले मकान बनवाऊँगा, ननसाल से भूमि मिले। जीवन सुखी, कुछ भूमि की हानि, भवनों का स्वामी, माता ठाठ से रहे, पिता को सन्तोष।
शुक्र की सातवीं उच्च दृष्टि द्वारा ग्यारहवें भाव को देखने पर जातक कम मेहनत से भी अच्छा लाभ प्राप्त कर लेता है। उसका दिमाग तकनीकी क्षेत्र में अधिक विकसित होने से वह जल्दी धनवान हो जाता है। ऐसा व्यक्ति सदा चिन्तामुक्त रहता है। मगर कुछ शारीरिक कमियां फिर भी बनी रहती हैं।
शुक्र षष्ठम भाव में –वृष लग्न के छठवें भाव में स्थित शुक्र के स्वक्षेत्री प्रभाव के कारण जातक अत्यन्त बलशाली एवं चतुर बुद्धि वाला होता है। वह अपने शत्रुओं पर आसानी से विजय प्राप्त कर लेता है, लेकिन विपरीत ग्रहों के फलादेश से उसकी शारीरिक सुन्दरता में कमी आती है। माता द्वारा कष्ट प्राप्त होता है।
सन्तान नीच विचार की, बुद्धिमान, बी.ए., न्यायकुशल, कानून व गणित की शिक्षा, मस्तक रोग, शिक्षा में अड़चनें।
शुक्र की सातवीं समदृष्टि के बारहवें भाव के प्रभाव से जातक को बाह्य साधनों या व्यक्तियों से लाभ मिलता है, मगर खर्च अधिक होता है। ग्रह स्थिति के योग से उसका किसी-न-किसी व्यक्ति से मनमुटाव बना रहता है।
शुक्र सप्तम भाव में – वृष लग्न के सातवें भाव में अपने मित्र मंगल की राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक का अपनी पत्नी से झगड़ा चलता रहता है। व्यवसाय या नौकरी में भी कई प्रकार के उतार-चढ़ाव आते हैं। साधारण कार्यों से कोई लाभ नहीं मिलता। उसे कठिन परिश्रम करना पड़ता है।
शक्तिशाली शत्रु, पर उनसे मित्रता। निरोग काया, सुन्दर शरीर, परतन्त्र, सुखी ननसाल से सहायता, खर्च अधिक, गुप्त चतुर, विजयी।
शुक्र की सातवीं दृष्टि द्वारा अपनी ही राशि के प्रथम भाव को देखने से जातक का सामाजिक कार्यों में अच्छा नाम होता है। वह भोग-विलास आदि में संलग्न होने लगता है। सभी से उसके अच्छे सम्बंध बनते हैं। लेकिन कुछ शारीरिक कष्ट भी उसे भोगना पड़ता है।
शुक्र अष्टम भाव में – वृष लग्न के आठवें भाव में शत्रु बृहस्पति की राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक को अनेक शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है, जिससे उसकी सुन्दरता में कमी आनी शुरू हो जाती है। लेकिन उसे कुछ प्राचीन वस्तुओं का लाभ भी मिलता है।
विवाह से पहले पसन्द कर लिया, पत्नी क्रोधी, पत्नी को सजाकर रखना चाहता है पर पत्नी से बिल्कुल न बने। भोग विलासी, रोजी बदलती रहे।
शुक्र की सातवीं मित्र दृष्टि द्वारा दूसरे भाव को देखने से जातक कड़ी मेहनत करता है। इसी मेहनत द्वारा उसे अभीष्ट लाभ मिलता है। मगर कमजोरी, शत्रुओं द्वारा हानि एवं पेट के रोग उत्पन्न होते हैं।
शुक्र नवम भाव में – वृष लग्न में शुक्र के नौवें भाव में स्थित होने से जातक कठोर परिश्रम द्वारा अपने भाग्य का निर्माण करता है। उसके साहस तथा पराक्रम से शत्रु पक्ष कमजोर पड़ता है। शरीर की बनावट सुन्दर होती है, मगर कुछ मामूली रोग उत्पन्न होने लगते हैं।
मामा को कठिन रोग, ठाट-बाट तथा प्रवीणता में कमी, धन प्राप्त, व्यापार में लाभ, विदेश गमन। दाहिनी टाँग में रोग।
शुक्र की सातवीं मित्र दृष्टि के तीसरे भाव के प्रभाव से जातक को भाई-बहनों द्वारा आंशिक लाभ मिलता है। फिर भी उसके कार्य-कौशल में वृद्धि होती है। सभी के साथ उसके वैमनस्य स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
शुक्र दशम भाव में – लग्न के दसवें भाव में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक का अपने पिता के साथ मामूली-सा मनमुटाव चलता रहता है। व्यवसाय आदि क्षेत्रों में काफी परिश्रम करना पड़ता है, तभी उसे कुछ सफलता मिलती है। अपने शत्रुओं पर उसका प्रभाव बना रहता है।
६० प्रतिशत भाग्यवान, परिश्रमी, प्रवीण, धर्म में श्रद्धा कम। यात्रा कम तथा लाभ, दैवशक्ति का सहारा, शत्रु भी भाग्यवान, मशप्राप्त, जीवन सुखी, नाम की मुहर बने।
शुक्र की सातवीं शत्रु दृष्टि द्वारा चौथे भाव को देखने पर जातक को माता से कष्ट मिलता है। व्यापार आदि क्षेत्रों में नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसी ग्रह स्थिति वाला व्यक्ति बड़ा ही अहंकारी होता है। इसी कारण वह उन्नति नहीं कर पाता।
शुक्र एकादश भाव में- वृष लग्न के ग्यारहवें भाव में स्थित उच्च शुक्र के प्रभाव से जातक कठिन परिश्रम करके अपनी आय बढ़ाता है। काया सुन्दर होती है,लेकिन उसे रोग होने का भय सताता रहता है। कभी-कभी शत्रुओं द्वारा भी उसे लाभ प्राप्त हो जाता है।
उच्चपदवी के विचार, राज में उन्नति, पिता प्रसन्न, पिता डाँटता रहे, शत्रुओं पर प्रभाव, सुखी जीवन, अन्त समय बन्नति, माता को स्वतन्त्रता ।
शुक्र की सातवीं नीच दृष्टि द्वारा पांचवें भाव को देखने से जातक के सन्तान पक्ष में कमी आ जाती है तथा उसकी शिक्षा अधूरी रहती है। ऐसा व्यक्ति अपने अभ्यास एवं प्रयत्नों द्वारा अपने कार्य पूर्ण करता है जिससे उसे खूब लाभ मिलता है।
शुक्र द्वादश भाव में -वृष लग्न के बारहवें भाव में शुक्र की उपस्थिति से जातक को धन अधिक खर्च करना पड़ता है। उसे बाहरी क्षेत्रों से अच्छा लाभ मिलता है। ऐसे व्यक्ति का अपना एक अलग ढंग होता है। उसका शरीर भले ही कमजोर हो, लेकिन वह कठिन मेहनत करता है जिससे उसे अच्छा लाभ मिलता है।
ऊँचे ठाट-बाट के व्यापार, बचपन से व्यापार सन्द, शत्रु भी मित्र बनकर इसकी नौकरी कर लें, व्यापार में लड़कियाँ लाजिम, न्याय में चतुरता, सन्तति कन्या, बड़ी दौड़-धूप करने वाला, मगले जन्म में बड़ा सुन्दर राजकुमार बनेगा और घोड़े की सवारी में निपुण गा तथा ठाठ बाट से जीवन बिताएगा, भाग्योदय बारह बार।
शुक्र की सातवीं दृष्टि के प्रभाव से जातक को शत्रुओं द्वारा हानि होती है जिससे वह काफी परेशान रहने लगता है। वह बुद्धिमान एवं साहसी होने पर भी शत्रुओं द्वारा हर बार प्रताड़ित होता है।
पूर्व में प्रसारित सप्ताहिक अंकों में आपने पढ़ा मेष लग्न में नवों ग्रहों के प्रत्येक लग्न के द्वादश भावों में मिलने वाले फल के बारे में
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