दशानन कृत ज्योतिष के आज के अंक में वृष लग्न में वृहस्पति के द्वादश भावों के शुभ अशुभ फल
20/मई/२०२४ • MAY 20, 2024
विक्रम संवत २०८१, शक संवत १९४६
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम् ॥
वृष लग्न का वृहस्पति आपके जीवन मे क्या प्रभाव डाल सकता है जानिए
वृष लग्न में वृहस्पति की बारह स्थितियों का अलग-अलग प्रभाव होता है
जनतानामा न्यूज़ भुवन जोशी अल्मोड़ा उत्तराखण्ड
ज्योतिषचार्य कौशल जोशी (शास्त्री) प्राचीन “कुमायूँ की काशी” माला सोमेश्वर
गुरु प्रथम भाव में– वृष लग्न के पहले भाव में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक को कठोर परिश्रम करना पड़ता है। उसे आयु तथा प्राचीन वस्तुओं का लाभ होता है। शिक्षा क्षेत्र में भी कुछ सफलता मिलती है।
क्षेत्र का प्रधान पर मृत्युभय बना रहे, व्यापार में अधिक खर्च करने पर लाभ, विदेश यात्रा में विफलता, बड़प्पन में कमी, बाएँ पैर में चोट। पिछले जन्म में सरकारी धन को लूटा है, इस कारण अब कोई रोजगार नहीं पनप रहा है।
बृहस्पति की सातवीं मित्र दृष्टि होने से जातक को व्यवसाय में कुछ अड़चनों के बाद आंशिक लाभ होता है। नौवीं शत्रु दृष्टि के कारण उसका भाग्य रुक जाता है। उसे कुछ निराशा होने लगती है। तब वह अपने को मजबूत करने के लिए कठोर परिश्रम तथा अपार संघर्ष करता है।
गुरु द्वितीय भाव में-वृष लग्न के दूसरे भाव में अपने मित्र बुध की राशि पर स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक के पारिवारिक जीवन में उतार-चढ़ाव आना शुरू हो जाता है। पांचवीं शत्रु दृष्टि होने से उसे अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में आंशिक सफलता मिलती है।
कार्य ईमानदारी का है, पर स्वयं चतुर है इसलिए कार्य मन में नहीं लगता, कार्य बदलना चाहता है परन्तु भाग्य कार्य को नहीं बदलता, वैसे कार्य बड़प्पन का है, प्रोफेसर, मेजिस्ट्रेट, पत्नी क्रोधी पर दयालु, पुत्र कुछ-न-कुछ करता रहता है, पुत्र शिल्पी, टाइपिस्ट, स्टेनो, उम्र कम।
बृहस्पति की सातवीं शुभ दृष्टि होने से जातक की आयु लम्बी होती है। शरीर स्वस्थ रहता है। नौवीं सम दृष्टि होने से राज्य पक्ष में कुछ सीमा तक सफलता मिलती है। ग्रह योग विपरीत होने पर पिता से झगड़ा बना रहता है।
गुरु तृतीय भाव में – वृष लग्न में बृहस्पति के तीसरे भाव में मित्र चन्द्रमा की राशि पर स्थित होने से जातक को अभीष्ट लाभ मिलता है। भाई-बहनों का पूर्ण सुख-सहयोग प्राप्त होता है। पांचवीं मित्र दृष्टि होने से कुछ रुकावटों के बावजूद आंशिक सफलता मिलती है।
रोजगार को बनिया छीन ले, बाई टाँग में चोट, पैतृक सम्पत्ति में कुछ भाग, दुकानदारी परेशान रहकर, परेशानियों से ही लाभ उठाने वाला, वृद्धावस्था में धनाढ्य।
बृहस्पति की सातवीं नीच दृष्टि के कारण जातक का भाग्य बिगड़ने लगता है। व्यवसाय में कुछ कठिन समस्याएं पैदा हो जाती हैं। ईश्वर के प्रति उसका विश्वास खत्म हो जाता है। नौवीं दृष्टि के प्रभाव तथा स्वराशि द्वारा ग्यारहवें भाव को देखने से उसकी आमदनी में वृद्धि होती है।
गुरु चतुर्थ भाव में -वृष लग्न में बृहस्पति के चौथे भाव में स्थित होने से जातक को माता का पूर्ण प्यार नहीं मिलता, लेकिन उसे अपनी जमीन-जायदाद का पूरा लाभ प्राप्त होता है। पांचवीं दृष्टि के नौवें भाव के कारण उसकी आयु में वृद्धि होती है तथा पुरातत्व सम्बंधी लाभ मिलता है।
पाँच भाई, व्यापार कुशल, भाई भी भाग्यवान, सब भाई एकत्र कुछ कार्य करें, मान-मर्यादा, आयु उत्तम, पराक्रमी पर दयालु, गृहस्थ पर कंट्रोल, धार्मिक भावना कम, यात्राएँ, बाद में सब भाइयों को अलग-अलग कार्य करा देना, जीवन में गौरव ।
बृहस्पति की सातवीं दृष्टि के प्रभाव से इस कुण्डली के गोचर एवं अस्थायी फलादेश के अंतर्गत काफी मेहनत करने पर भी जातक को सफलता नहीं मिलती। पिता द्वारा कोई सुख नहीं प्राप्त होता। ग्रह स्थितिवश बाहरी व्यक्तियों से मामूली- सा लाभ अवश्य मिलता है, लेकिन संतुष्टि नहीं होती।
गुरु पंचम भाव में – वृष लग्न के पांचवें भाव में मित्र बुध की राशि पर स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक को अपने परिवार तथा सन्तान द्वारा अच्छा सहयोग मिलता है। उसे आयु का भी लाभ होता है। पांचवीं नीच दृष्टि के शत्रु राशि पर पड़ने से व्यक्ति नास्तिक बन जाता है।
घर में ही व्यापार, धन कमाकर ऊँचा भवन बनवाया है, घर में ही मृत्यु, सुखी जीवन, माता के नाम पर व्यापार, दीर्घजीवी, उम्र बड़ी, पिता सुखी।
बृहस्पति की सातवीं दृष्टि के प्रभाव से जातक के भाग्य में वृद्धि होती है। आय के स्त्रोतों से अत्यधिक लाभ मिलता है। नौवीं शत्रु दृष्टि के कारण उसे अपना दैनिक जीवन सुचारु रूप से चलाने के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है।
गुरु षष्ठम भाव में-वृष लग्न के छठवें भाव में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक अपने बड़े से बड़े शत्रु पर विजय हासिल करने में सफल होता है। पांचवीं शत्रु दृष्टि होने से पिता तथा राज्य के क्षेत्र में कठिनाइयां आती हैं। व्यवसाय और नौकरी आदि में भी उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहती है।
कोई सन्तान बड़ी होकर मृत्यु को प्राप्त हो, शेष सन्तान का व्यापार पर कब्जा, परन्तु वह व्यापार भी बदल जाए, विद्वान्, अध्यापन, वकालत, कानूनी, व्यापार में उलट-फेर, बातों में अरुचि, साधारण लाभ, बड़प्पन में कमी।
बृहस्पति की सातवीं मित्र दृष्टि होने से जातक को बाह्य साधनों से लाभ अवश्य होता है, परन्तु उसका खर्च बढ़ने लगता है। नौवीं मित्र दृष्टि के कारण कुछ ही समय बाद मामूली काम-धंधा करने से भी अच्छा लाभ मिलता है।
गुरु सप्तम भाव में – वृष लग्न के सातवें भाव में मित्र मंगल की राशि पर स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक को स्त्री तथा व्यवसाय के प्रति काफी चिन्ता होती है। कुछ आयु लाभ अवश्य होता है। पांचवीं दृष्टि द्वारा ग्यारहवें भाव को देखने से आय स्रोतों से अच्छा धन प्राप्त होता है।
बाईं टाँग छोटी, टाँग में दोष, रोजगारों में घाटा, कई कार्य बदले जाएँ परन्तु असफलता, पिता से बिगड़ जाए, नौकरी में अरुचि, साधारण लाभ, बड़प्पन में कमी।
बृहस्पति की सातवीं मित्र दृष्टि द्वारा बारहवें भाव को देखने के कारण जातक को भाई-बहन का अच्छा सुख-सहयोग मिलता है, लेकिन शरीर में कुछ समय के लिए कमजोरी आ जाती है। इस कारण वह उग्र एवं क्रोधी होने के साथ-साथ स्वार्थी भी बन जाता है।
गुरु अष्टम भाव में – वृष लग्न के आठवें भाव में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक की आयु में वृद्धि होती है तथा प्राचीन वस्तुओं का लाभ मिलता है। इससे वह अच्छा जीवन व्यतीत करता है। धन कमाने में थोड़ी कमी रहती है। पांचवीं मित्र दृष्टि से बारहवें भाव को देखने पर बाहरी क्षेत्रों से कुछ लाभ होता है।
क्रोधी पत्नी ससुराल में आकर दयालु बन गई तभी से रोजगार में लाभ होने लगा। पत्नी अपने पिता का भी व्यापार में हाथ बँटाती थी। उम्र भर पत्नी को प्रसन्न रखा। चालीस वर्ष बाद विदेश जाने की इच्छा। विदेश में लाभ, दयालु और विद्वान्।
बृहस्पति की सातवीं दृष्टि के प्रभाव से जातक के परिवार में धन की अच्छी आमदनी होती है। सभी सदस्य खूब धन कमाते हैं। मगर माता के स्वास्थ्य की चिन्ता बनी रहती है।
गुरु नवम भाव में – वृष लग्न के नौवें भाव में बृहस्पति की उपस्थिति से जातक की धार्मिक कार्यों में कोई रुचि नहीं रहती। उसका भाग्य साथ नहीं देता। कठिन परिश्रम करने के बाद भी आंशिक लाभ प्राप्त होता है। ग्रह स्थिति के प्रभाव से शरीर में अपंगता अथवा कुछ कमी आती है। जीवन को सुखमय बनाने के लिए विशेष कार्य करना पड़ता है।
आयु भर व्यापार। व्यापार विदेश में खूब जमे,पैतृक धन भी मिले, खर्च अधिक, जीवन में गौरव।
बृहस्पति की सातवीं उच्च दृष्टि के प्रभाव से भाई-बहनों द्वारा जातक को सुख-सहयोग मिलता है। उसका स्वभाव अच्छा बना रहता है। नौवीं दृष्टि के प्रभाव से उसे सन्तान द्वारा कोई सुख नहीं मिलता।
गुरु दशम भाव में -वृष लग्न के दसवें भाव में शत्रु शनि की राशि पर स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक को अपने व्यापार में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई जगहों से लाभ मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। पांचवीं मित्र दृष्टि से लाभ में बढ़ोत्तरी होती है। परिवार द्वारा उसे पूर्ण प्यार एवं सहयोग मिलता है।
सूरत मत देखो भाग्यवान् है। व्यापार में वृद्धि भाग्य में लिखाकर लाया है। भाई-बहनों को बड़ा प्रेम करता है, कभी-कभी दैव साथ नहीं भी देता। लम्बी यात्राएँ लिखी हैं, यात्राएँ व्यापार सम्बन्धी भी हैं।
बृहस्पति की सातवीं शत्रु दृष्टि होने के कारण जातक का अपने शत्रुओं पर अच्छा प्रभाव पड़ता है जिससे वे कमजोर होते हैं। ऐसी कुण्डली वाले व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है तथा कुछ पुरानी सम्पत्तियों का लाभ मिलता है।
गुरु एकादश भाव में -वृष लग्न के ग्यारहवें भाव में स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक की अपनी अलग पहचान बनती है। उसके किए गए सारे कार्य सफल होते हैं। कठिन मेहनत करने के बाद अच्छी आमदनी होती है। उसे भाई- बहनों का अपार सुख भी प्राप्त होता है।
माता सुखी, पिता को सहारा। पिता मरण पर्यन्त रोजगार में लगा रहे। दूर की नौकरी, दिल का रोग, अन्त में सुधार। विदेश की नौकरी के लिए नौकरी का त्याग किया।
बृहस्पति की सातवीं दृष्टि से जातक को शिक्षा आदि के क्षेत्र में कुछ कठिनाइयां होती हैं। संतान पर भी उल्टा प्रभाव पड़ता है। नौवीं मित्र दृष्टि पड़ने से व्यापार में अच्छी कमाई होती है। उसका नाम बड़े-बड़े उद्योगपतियों में लिया जाता है।
गुरु द्वादश भाव में -वृष लग्न के बारहवें भाव में मित्र मंगल की राशि पर स्थित बृहस्पति के प्रभाव से जातक को अपने बाह्य क्षेत्रों से धन कमाने के लिए काफी खर्च करना पड़ता है। पांचवीं मित्र दृष्टि होने से कठोर परिश्रम द्वारा ही सुख प्राप्त होता है, लेकिन माता का पूर्ण सुख उसे नहीं मिलता।
व्यापार कुशल, जीवन में अनेक लाभ। व्यापार सम्बन्धी विदेशी यात्राएँ। सन्तान व्यापार में साथ न दे। धनवान, मान-मर्यादा। साहूकारा, समझदार, न्यायप्रिय, विद्वान, मैजिस्ट्रेट। अगले जन्म में वैद्य बनेगा तथा इसका इलाज अन्तिम हुआ करेगा, विदेश में उन्नति दो बार।
बृहस्पति की सातवीं शत्रु दृष्टि होने से जातक अपने शत्रुओं पर गोपनीय तथा कूटनीतिक चालों से सफलता प्राप्त कर लेता है। इससे शत्रु पक्ष कमजोर पड़ जाता है। नौवीं नीच दृष्टि होने से आयु की कमी बनी रहती है, खर्च अधिक होता है तथा आमदनी कम होती है। कुल मिलाकर उसका जीवन स्तर सामान्य ही रहता है।
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