दशानन कृत ज्योतिष का दूसरा भाग मेष लग्न में राहु के द्वादश भावों के शुभ अशुभ फल
०७/अप्रैल/२०२४ • APREL 07, 2024

विक्रम संवत २०८१, शक संवत १९४५
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम् ॥
मेष लग्न का राहु आपके जीवन मे क्या प्रभाव डाल सकता है जानिए जन्मकुण्डली जातक के जन्म समय में ग्रहों की स्थिति की परिचायक होती है। इन आकाशीय ग्रहों से मनुष्य के जीवन पर प्रभाव पड़ता है। राहु क्रूर प्रकृति का ग्रह है। मेष लग्न में इसके बारह भावों का फलादेश इस प्रकार है-
राहु प्रथम भाव में– मेष लग्न के प्रथम भाव में शत्रु मंगल की राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक हमेशा बीमार-सा दिखाई देता है, जिससे उसका सौंदर्य बिगड़ जाता है।
सिर के अवयवों में कमी, चिन्ता, भारी क्रोध के कारण नुकसान। भाइयों से झगड़ा, सिर पर आघात, पराक्रमी, उन्नति के पथ पर अग्रसर। अनाधिकार प्रयत्न, डाकुओं का साथी।
इस शारीरिक कमी के कारण जातक चिन्ताग्रस्त होकर हृदय रोगी बन जाता है। वह अपने स्वार्थ के लिए झूठ तथा चालाकी का सहारा लेना शुरू कर देता है। उसमें इतना साहस हो जाता है कि वह कोई भी अनैतिक एवं गलत कार्य करने से नहीं हिचकिचाता।
राहु द्वितीय भाव में-मेष लग्न के दूसरे भाव में स्थित राहु के फलादेश से जातक की आर्थिक दशा हमेशा खराब बनी रहती है। परिवार में सबके साथ कलह-क्लेश होता रहता है।
पिता की सम्पत्ति का सत्यानाश। कर्ज, अनाधिकार प्रयत्न। जेब कट, भाइयों को पिता की शेष सम्पत्ति मिले, अशान्ति । संकटों का सामना। चिन्तायुक्त ।
ऐसा जातक गुप्त युक्तियों से काम लेकर अपने बुद्धि बल से कुछ समस्याओं पर विजय पा लेता है जिससे उसका जीवन संवरने-सुधरने लगता है। अन्ततः वह समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में स्थान बनाता है।
राहु तृतीय भाव में – मेष लग्न के तीसरे भाव में स्थित उच्च राहु के प्रभाव से जातक के जीवन में विशेष परिवर्तन होता है। उसके पराक्रम में अपार वृद्धि होने के साथ-साथ भाई-बहनों का भरपूर सुख तथा सहयोग भी मिलता है।
भारी पुरुषार्थ। गुप्त युक्तियों से कार्य, कठिन कार्यों को पूरो करे, दूसरों को दबाव में रखे, प्रभावशाली, अपनी स्वार्थ- सिद्धि के लिए कभी न चूकने वाला, साहसी, हथियार साथ रखे, भाग्योदय चार बार।
इस कुण्डली का जातक गम्भीर स्वभाव वाला, कठिन परिश्रमी, साहसी, चतुर तथा तकनीकी ज्ञान रखने वाला होता है। वह सुख-दुःख- सभी परिस्थितियों में एक समान होता है। इसी स्वभाव के कारण वह अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता रहता है।
राहु चतुर्थ भाव में – मेष लग्न के चौथे भाव में शत्रु राशि में स्थित राहु के प्रभाव से जातक को अपनी माता, मकान और जमीन से कुछ हानि उठानी पड़ती है जिससे परिवार में कलह चलता रहता है।
माता की उम्र कम, सुख की कमी, सवारी चोरी चली जाए, मकान छिन जाए, यदि चन्द्रमा कृष्णपक्ष का हो तो जमीन जायदाद से दूसरों को चमत्कृत कर देने वाला, भाई माता के खिलाफ।
परिवार में वाद-विवाद तथा झगड़ा चलते रहने से जातक मानसिक रोगी बन जाता है। कई कोशिशों के बावजूद वह इन समस्याओं से नहीं उबर पाता। उसे कुछ शारीरिक रोग भी घेर लेते हैं।-
राहु पंचम भाव में – मेष लग्न के पांचवें भाव में शत्रु सूर्य की राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक को शिक्षा के क्षेत्र में काफी कष्ट उठाने पड़ते हैं। फिर भी उसे सफलता नहीं मिलती। इस कारण वह चिंतित एवं परेशान रहता है।
शिक्षा में कमी, बुद्धि में कमी, एक पुत्र मूर्ख, सन्तान से सुख न मिले। हकला। अपने विचार उत्तमता से प्रकट न कर सके।
ऐसी कुण्डली वाले जातक को प्रायः सन्तान से भी कोई सुख नहीं मिलता, लेकिन कूटनीतिक युक्तियों द्वारा वह अपनी कुछ योजनाओं में सफल हो जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ने से उसे कई क्षेत्रों में पिछड़ना पड़ता है। हर जगह उसकी बुराई ही होती रहती है।
राहु षष्ठम भाव में – मेष लग्न के छठवें भाव में स्थित राहु के फलादेश से जातक विषम परिस्थितियों में भी अपने कार्य में सफल हो जाता है। यहां तवा पि यह अपने शत्रुओं पर विजय भी प्राप्त कर लेता है। उसके कौशल तथा पराक्रम को सभी लोग बड़ाई करते हैं।
पराक्रमी, विजयी, शत्रु संहारक, निरोगी, चतुर, कूटनीति से कार्य। सावधान। नई-नई युक्तियाँ सोचने वाला ननसाल में दिक्कतें, मामा दुखी।
ऐसा बताई कभी-कभी राह के विशेष प्रभाव से कई जटिल मुसीबतों में फेस जोरेसा जावक से वह स्वयं के विवेक द्वारा सफलतापूर्वक छुटकारा पा लेता है। ऐसे कायों से वह समाज में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन जाता है। एक सभ्य समाज के निर्माण द्वारा यश प्राप्त करके वह सुखी जीवन जीता है।
राहु सप्तम भाव में -मेष लग्न के सातवें भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक या अपने रोजगार या व्यवसाय सम्बंधी चिन्ता हर वक्त लगी रहती है। स्त्रो पक्षा से की त्रस्त रहता है, लेकिन अपने युक्तिसंगत कार्यों और तेज दिमाग से वा जल्दी चिन्तामुक्त हो जाता है।
विवाह देर में हो, पत्नी से न बने, कुछ अलग- अलग रहें। पत्नी को मारे। रोजगार में परेशानियाँ, रोजी में कमी, अनाधिकार लाभ उठाने वाला, चालाक।
ऐसी कुण्डली का जातक तेज दिमाग वाला होने से अपने कई कार्य जरा-सी मेहनत से ही पूरे कर लेता है। वह अपने परिवार के लिए जैसे-तैसे कार्य करके धन एवं आवश्यक वस्तुओं को आसानी से इकट्ठा कर लेता है तथा आराम की जिन्दगी जीने की भरपूर कोशिश करता है।
राहु अष्टम भाव में – मेष लग्न के आठवें भाव में शत्रु मंगल की राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक को अनेक घोर कष्टदायक घटनाओं का शिकार होना पड़ता है जिसमें कई बार जान पर बन आती है। लेकिन वह अपनी आदतों एवं स्वभाव में परिवर्तन नहीं ला पाता।
सर्प व सीढ़ी का भय, बन्धु-बान्धव दुखी, उम्र कम, पेट के निचले भाग में रोग, सन्तान को कष्ट।
ऐसे जातक को कई पुरानी सम्पत्तियों का नुकसान भी उठाना पड़ता है। कई बार गहन परिश्रम तथा उच्च स्तरीय कार्य करने पर भी उसको जटिल समस्याओं का अन्त नहीं होता।
राहु नवम भाव में – मेष लग्न के नौवें भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जतक के जीवन में पिछड़ापन आने लगता है। कठिन से कठिन काम करने पर भी उसे सफलता नहीं मिलती। धार्मिक कार्य तथा पूजा-पाठ लगता। ठ में भी उसका मन नहीं
भाग्य में बाधा, धन का नुकसान, यात्रा में नुकसान अपने धर्म में विश्वास न रखे, ईश्वर की सहायता में कमी, अपयशी, शत्रु डगमगा जाए।
ऐसे जातक को हर जगह से निराशा, बुराई तथा बेइज्जती का ही सामना करना पड़ता है। चाहे वह कितनी ही मेहनत अथवा भलाई के काम कर ले, उसे बुराई तथा अपयश ही मिलता है। कई कठिन काम करने के बाद भी उसे किसी प्रकार की कोई सफलता नहीं मिलती।
राहु दशम भाव में -मेष लग्न के दसवें भाव में स्थित राहु के फलादेश से जातक अपने पिता द्वारा कई कठिनाइयों का शिकार हो जाता है। नौकरी, व्यवसाय तथा मान-सम्मान के क्षेत्र में भी कष्ट झेलने पड़ते हैं।
पिता दुखी, स्त्री दुखी, माता दुखी, सर्विस में परिश्रम करना पड़े। पेचीदा तरकीबों से सुख पावे। नाव में डूबना।
ऐसे जातक को कई परेशानियों के साथ कष्टमय जीवन जीना पड़ता है। भाग्य के सारे द्वार बन्द हो जाते हैं। चारों तरफ से निराशा और कष्ट ही मिलता है। उसे बहुत ही सामान्य जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है।
राहु एकादश भाव में – मेष लग्न के ग्यारहवें भाव में मित्र शनि की राशि पर स्थित राहु के प्रभाव से जातक की आर्थिक स्थिति ठीक रहती है, लेकिन उसे इसके लिए बहुत ही कठोर परिश्रम करना पड़ता है।
लोहे के निर्माण से लाभ ही लाभ, कभी-कभी नुकसान, एक भाई से सांझा, गुप्त युक्तियों से कार्य-कुशल, व्यवहार में रूखा परन्तु चतुर, सब संकटों को पार करने वाला, अगले जन्म में कोयले का कार्य करेगा तथा जीवन में सुख पाएगा।
ऐसे जातक को कभी-कभी विपरीत परिणाम भी भोगने पड़ते हैं, जिसमें उसे हानि उठानी पड़ती है। ऐसी ग्रह स्थिति वाला जातक कठोर परिश्रमी, स्वार्थी, मितव्ययी तथा लालची भी होता है।
राहु द्वादश भाव में – मेष लग्न के बारहवें भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक का दैनिक जीवन में खर्च पूरा नहीं हो पाता। फलतः उसे कुछ अनैतिक साधनों का सहारा लेना पड़ता है। लेकिन उसमें भी वह प्रायः सफल नहीं हो पाता।
एक भ्राता की हानि, भाग्य में हानि खर्च बहुत, हताश न होने वाला, यात्रा में नुकसान, प्रधान का अनुगामी, पिछले जन्म में वकील तथा अपराधियों की तरफदारी करता था, इसलिए इस जन्म में मुकद्दमों में विशेष खर्च हो रहा है, धन की कमी।
कभी-कभी विजय हासिल होने पर कुछ फिजूलखर्ची का योग बन जाता है, जिससे उसे फिर कठिन जीवन जीना पड़ता है। जरूरी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उसे उधार लेकर कार्य करना पड़ता है। इस कारण वह कर्ज के बोझ से भी दब जाता है।
मेष लग्न के जातक मेष लग्न में केतु के होने से पढ़ने वाले प्रभावों की जानकारी के लिए पढ़ें अगले रविवार का
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ज्योतिषाचार्य कौशल जोशी शास्त्री
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