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दशानन कृत ज्योतिष का तीसरे भाग मेष लग्न में मंगल के द्वादश भावों के शुभ अशुभ फल

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०३/मार्च/२०२४ • MARCH 3, 2024

विक्रम संवत २०८०, शक संवत १९४५

यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।

तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम् ॥

मेष लग्न का मंगल आपके जीवन मे क्या प्रभाव डाल सकता है जानिए

ज्योतिषचार्य कौशल जोशी (शास्त्री) प्राचीन “कुमायूँ की काशी” माला सोमेश्वर से

मेष लग्न में मंगल के द्वादश भावों का शुभाशुभ प्रभाव

जनतानामा न्यूज़ भुवन जोशी अल्मोड़ा उत्तराखण्ड

मंगल ग्रह क्या है परिचय
मंगल ग्रह ईष्यालु प्रकृति का, उत्तेजक, तृष्णाकारक तथा दुःखदायी होता है। यह दक्षिण दिशा का स्वामी, पुरुष जाति, रक्त वर्ण, पित्त प्रकृति एवं अग्नि तत्व बाला होता है। मेष लग्न में मंगल की द्वादश स्थिति निम्न प्रकार से होती है-

मंगल प्रथम भाव में- मेष लग्न के पहले भाव में स्वराशि पर स्थित मंगल के प्रभाव से जातक अत्यधिक आत्मविश्वासी, सुदृढ़ तथा मजबूत शरीर वाला होता है। इस कारण उसमें साहस की कमी नहीं रहती। ऐसे व्यक्ति को कभी-कभी गम्भीर रोगों एवं कष्टों का सामना भी करना पड़ता है। अष्टम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखने पर उसकी आयु लम्बी होती है।

परमवीर, साहसी, शिकारी, निशानेबाज । अपने से अधिक से भी जूझ पड़े। अवसर पर डाकुओं से मिल जाए। माता पर हाथ उठा दे। जमीन जायदाद बँटवारे में अधिक प्राप्त कर ले। स्त्री की न माने। पत्नी को दुखी रखे, क्रोधी और हठी। रूखा, अभिमानी, मंगली । विवाह से पहले ही पत्नी को धोखे से देख आए। हथियार छिपाकर रखे।

मंगल द्वारा सातवीं दृष्टि से शुक्र की राशि वाले सप्तम भाव को देखने से जातक की आयु लम्बी होती है। लेकिन पत्नी तथा कारोबार द्वारा हानि उठानी पड़ती है।


मंगल द्वितीय भाव में – मेष लग्न के दूसरे भाव में अपने शत्रु ग्रह शुक्र की राशि में स्थित मंगल के फलादेश से जातक को शारीरिक कष्टों एवं रोगों का सामना करना पड़ता है। इससे धन संचय करने में कठिनाई आती है। मंगल द्वारा चौथी दृष्टि से पंचम भाव को देखने के कारण उसे सन्तान पक्ष तथा शिक्षा के क्षेत्र में कष्ट सहना पड़ता है।

पिता की जायदाद पर पूरा कब्जा। धोखे से धन प्राप्त करने वाला। गिरह कट, शिक्षा कम, उम्र बड़ी, पिता के धन से रोजगार, धन का नुकसान ।

मंगल द्वारा सातवीं दृष्टि से आठवें भाव को देखने पर जातक दीर्घायु प्राप्त करता है। आठवीं दृष्टि से नौवें भाव को देखने के कारण भाग्य में बढ़ोत्तरी रुक जाती है, जिससे उसे काफी कठिनाई होती है।


मंगल तृतीय भाव में – मेष लग्न के तीसरे भाव  में अपने सहयोगी ग्रह बुध की राशि पर स्थित मंगल के प्रभाव से जातक बहुत साहसी तथा पराक्रमी होता है। परन्तु मंगल की अष्टम दृष्टि से प्रायः भाई-बहनों के सहयोग में कमी आ जाती है। मंगल द्वारा चौथी दृष्टि से षष्ठ भाव को देखने के कारण व्यक्ति अपने शत्रु पक्ष पर बिजय पा लेता है।

बन्धुबान्धवों से झगड़ा। असीमशक्ति, गुण्डागर्दी। छोटे भाई की उम्र कम । शत्रु संहारक। परेशानियों पर विजय, भाग्यवान् परन्तु एक भाई की मृत्यु।

मंगल द्वारा सातवीं दृष्टि से मित्र ग्रह बृहस्पति की राशि वाले नौवें भाव को देखने पर जातक का भाग्योदय होता है। आठवीं दृष्टि से शत्रु शनि की राशि वाले दसवें भाव को देखने के कारण राज्य, पिता तथा व्यवसाय के क्षेत्र में कठिनाइयां जाती है।

मंगल चतुर्थ भाव में-मेष लग्न के चौथे भाव में चन्द्रमा की राशि पर स्थित मंगल के नीच प्रभाव से जातक को भूमि, घर तथा माता का सुख अधिक नहीं प्राप्त हो पाता। चौथी दृष्टि से शत्रु शुक्र की राशि वाले सातवें भाव को देखने के कारण उसे स्त्री का सुख पाने में काफी कठिनाई उठानी पड़ती है।

मंगली, माता को कष्ट, मकान गिर जाए, मामूली चोट। पत्नी से अनबन, पत्नी को कष्ट। पिता की उन्नति । उत्तम नौकरी, नौकरी में सुख, पिता की आज्ञा माने। छोटा भाई बीमार, माता का हत्यारा। हृदय रोग।

मंगल द्वारा सातवीं उच्च दृष्टि से शत्रु शनि की राशि वाले दसवें भाव को देखने से पिता तथा राज्य द्वारा लाभ प्राप्त होता है। आठवीं दृष्टि से शत्रु शनि की राशि वाले ग्यारहवें भाव को देखने पर लाभ प्राप्ति का योग बनता है, परन्तु अधिक परिश्रम के बावजूद आंशिक लाभ ही मिलता है।


मंगल पंचम भाव में –मेष लग्न के पांचवें भाव में अपने मित्र सूर्य की राशि पर स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को सन्तान पक्ष से कठिनाई होती है। मगर चौधी दृष्टि से स्वराशि के अष्टम भाव को देखने पर आयु बढ़ती है।

रात-दिन विद्या पढ़े, गणित में होशियार, भूगोल में रुचि, रोजगार करे। रोजगार में कभी-कभी हानि। रोजगार बदलते रहें। मशीनरी के कार्य, पुत्र सन्तति। छोटे पुत्र की उम्र कम।

मंगल द्वारा सातवीं दृष्टि से शनि की राशि वाले ग्यारहवें भाव को देखने पर जातक का जीवन जटिल कठिनाइयों के साथ गुजरता है। बाद में कुछ लाभ के आसार होते हैं। आठवीं दृष्टि से मंगल अपने मित्र ग्रह बृहस्पति के बारहवें भाव को देखता है। फलस्वरूप फिजूलखर्च का योग बनता है। जीविका चलाने के लिए उसे बाह्य स्रोतों की सहायता लेनी पड़ती है।

मंगल षष्ठम भाव में –मेष लग्न के छठवें भाव में अपने परम मित्र बुध ग्रह की राशि में स्थित मंगल के आगमन से जातक साहसी, कठिन परिश्रमी, निर्भय तथा शत्रु पर विजयी होता है।

शत्रुओं को धमका कर भगादे। रोग मुक्त। जीवन उलझनमय। परतन्त्र रहे। बलशाली। स्वार्थी। छिपकर काम करने वाला। एक-दो शत्रुओं को जाने से मार दे। पुलिस विशेष नुकसान न पहुँचावे । ननिहाल दुखी। बाई टाँग पर वजन गिर पड़े।

मंगल द्वारा चौथी दृष्टि से शनि की राशि वाले दसवें भाव को देखने के कारण जातक को निराशा का मुंह देखना पड़ता है। सातवीं दृष्टि से मित्र बृहस्पति की राशि के बारहवें भाव को देखने पर अधिक खर्च होने का योग बनता है। इसी लग्न में आठवीं दृष्टि से अपनी राशि वाले पहले भाव को देखने से जातक का शरीर सदैव स्वस्थ तथा मजबूत बना रहता है। उसका स्वाभिमान उच्च होता है।

मंगल सप्तम भाव में -मेष लग्न के सातवें भाव  में शुक्र की राशि में मौजूद मंगल के फलादेश से जातक को व्यवसाय में कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। साथ ही स्त्री पक्ष से कष्ट उठाना पड़ता है। चौथी उच्च दृष्टि से शनि की राशि के दसवें भाव को देखने पर उसको पिता तथा राज्य द्वारा दिए गए कार्यों से यश प्राप्त होता है।

मंगली, पत्नी दुखी, विवाह से पहले पत्नी को देख ले, दैनिक रोजी की चिन्ता। रोजगार बदलते रहे। बाई टाँग में चोट । पत्नी पर दबाव। सांझे में नुकसान। दूसरा विवाह हो जाए।

मंगल द्वारा सातवीं दृष्टि से अपनी ही राशि वाले पहले स्थान को देखने के कारण जातक का शरीर स्वस्थ, निरोग और प्रभावशाली बनता है। आठवीं दृष्टि से शुक्र की राशि वाले दूसरे भाव को देखने पर उसे कठोर मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन इसके बावजूद बहुत कम लाभ मिलता है। उसके जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।

मंगल अष्टम भाव में-मेष लग्न के आठवें भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक की उम्र लम्बी होती है। उसे प्राचीन वस्तुओं का लाभ प्राप्त होता है। लेकिन कुछ परिस्थितियों में लग्न का स्वामी भी होने से शारीरिक बनावट में कमी पैदा होती है। चौधी दृष्टि से शनि की राशि वाले ग्यारहवें भाव को देखने से आगे के साधनों में कुछ रुकावटों के बाद राहत मिलती है।

उम्र बड़ी, वीर, दृढ़ी, स्वार्थी, कातिल। हथियार छिपाकर रखे, डाकुओं से मेल। वृद्धावस्था शीघ्र । अपने को स्वयं उलझनों में फैसाता रहे। सिर का रोगी। मंगली, विदेश में भाग्योदय तीन

मंगल द्वारा सातवीं दृष्टि से शत्रु शुक्र की राशि वाले दूसरे भाव को देखने के कारण जातक को धन तथा परिवार की ओर से चिन्ता बनी रहती है। आठवीं मित्र दृष्टि द्वारा तीसरे भाव को देखने पर मंगल जातक के पुरुषार्थ में वृद्धि करके उसका पराक्रम बढ़ाता है। कुछ परिस्थितियों में अष्टमेश होने से यह भाई-बहनों के सुख- सहयोग में अल्प समय के लिए कमी पैदा करता है।



मंगल नवम भाव में -मेष लग्न के नौवें भाव में मित्र राशि में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को अनेक लाभ मिलते हैं, परन्तु कुछ स्थितियों में मंगल के अष्टमेश होने से कठिनाइयां भी आती रहती हैं। चौथी मित्र दृष्टि से बारहवें भाव को देखने पर खर्च के लक्षण अधिक होते हैं।

उत्तम भाग्य लिखाकर आया है। धार्मिक ग्रन्थों का योग कम, तीर्थों का बहिष्कार। एक भाई की हानि, बन्धु-बान्धवों से झगड़ा। मिट्टी पकड़े तो सोना हो। उच्चपद की अभिलाषा। नाम को मुहर बने।

मंगल की सातवीं दृष्टि से जातक के साहस तथा पराक्रम में अपार वृद्धि होती है। लेकिन मंगल के अष्टमेश होने के कारण भाई-बहनों के सुख-सहयोग में कुछ कमी आती है। आठवीं नीच दृष्टि से भूमि, माता, भवन तथा वाहन आदि के सुख में बाधा रहने के आसार होते हैं।

मंगल दशम भाव में – मेष लग्न के दसवें भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक की परिवार में- मुख्य रूप से अपने पिता से- अनबन चलती रहती है, लेकिन वह अपने काम में सफल होता रहता है।

पुलिस या फौज की नौकरी, इंजीनियर अहंकारी, क्रोधी, माता का ध्यान न रखे, पिता का आज्ञाकारी। स्वतन्त्रता से हुकूमत करे। मकान छूट जाए। सवारी सरकारी मिले, भाग्योदय में गड़बड़, धैर्यवान।

मंगल द्वारा सातवीं नीच दृष्टि से चौथे भाव को देखने के कारण जातक के भूमि-भवन के सुख तथा माता के प्यार में कमी रहती है। आठवीं मित्र दृष्टि होने से विद्या एवं सन्तान के क्षेत्र में काफी सफलता मिलती है। उसके बुद्धि-विवेक का विकास होता है।

मंगल एकादश भाव में-मेष लग्न के ग्यारहवें भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक की कमाई में वृद्धि होती है, लेकिन इसी में अष्टमेश दोष होने के कारण कुछ कठिनाइयां भी आती हैं। चौथी दृष्टि द्वारा शत्रु राशि देखने के कारण अल्प लाभ को छोड़कर प्रायः परिवार सम्बंधी असन्तोष बना रहता है।

व्यापार में कूटनीति। लाभ हर जगह चाहने वाला, उम्र भर उत्तम आमदनी। कुल पुर्जे, व्यापार में झगड़ा, विदेश में रोजगार, अगले जन्म में भी कलपुर्जे बनाने का कार्य करेगा, परन्तु क्रोधी रहेगा।

मंगल द्वारा सातवीं दृष्टि से मित्र राशि के पंचम भाव को देखने पर जातक के सन्तान पक्ष तथा ज्ञान के क्षेत्र में कमी रहती है। आठवीं मित्र दृष्टि से छठवें भाव को देखने से शत्रु पक्ष कमजोर पड़ जाता है तथा उसके साहस में वृद्धि होती है।

मंगल द्वादश भाव में-मेष लग्न के बारहवें भाव में मित्र बृहस्पति की राशि पर स्थित मंगल के प्रभाव से जातक इधर-उधर घूमने का शौकीन तथा खर्च करने का आदी होता है। चौथी दृष्टि से देखने पर वह पराक्रमी होता है, लेकिन मंगल के अष्टमेश होने के कारण भाई-बहनों के सुख में कमी आ जाती है।

उम्र कम खर्च के कारण परेशान, पत्नी दुखी, मंगली योग। पहली पत्नी कमजोर, दूसरा विवाह हो जाए, हेर फेर वाले कार्य। नशीले पदार्थों पर खर्च। बाग कटवा दे। पिछले जन्म में अपने चाचा-ताऊ की सेवा नहीं की जिसके कारण चोट-चपेट में मृत्यु समान कष्ट उठाना पड़ रहा है। चाचा-ताऊ का धन भी हरण किया था इसलिए जन्म से ही धन का नुकसान हो रहा है। पैरों में चोट

मंगल द्वारा सातवीं दृष्टि से छठवें भाव को देखने पर जातक का शत्रु पक्ष भयभीत होता है। आठवीं दृष्टि से शुक्र की राशि वाले सातवें भाव को देखने से व्यवसाय के क्षेत्र तथा स्त्री सुख में कमी होती है।

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