दशानन कृत ज्योतिष का दूसरा भाग मेष लग्न में शुक्र के द्वादश भावों के शुभ अशुभ फल
२४/मार्च/२०२४ • MARCH 10, 2024

विक्रम संवत २०८०, शक संवत १९४५
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम् ॥
मेष लग्न का शुक्र आपके जीवन मे क्या प्रभाव डाल सकता है जानिए
शुक्र प्रथम भाव में-मेष लग्न के पहले भाव में शत्रु ग्रह मंगल की राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक चतुर होशियार ताकतवर मध्य तथा सुन्दर काया घाला होता है।
पिता का धन मिले, विवाह से पहले पत्नी इसे देख ले, चित्त प्रसन्न, क्रोधी तथा हँसमुख, शान शौकत का जीवन, धनाढ्य,सुन्दरता, भोग विलास, कार्य कुशल।
शुक्र सातवीं दृष्टि से सातवें भाव को देखता है, जिसके प्रभाव से स्त्री तथा कारोबार में अभीह लाभ मिलता है। इसका कुछ लक्षण धनेश होने से काम-धंधे एवं परिवार में आंशिक गड़बड़ी पैदा होती है
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शुक्र द्वितीय भाव में-मेष लग्न के दूसरे भाव में अपनी ही राशि पर स्थित शुक्र ग्रह के प्रभाव से जातक का भरा-पूरा परिवार होता है। वह सौभाग्यशाली होने के साथ ही साथ धनी बनता है। इसमें शुक्र, धनेश तथा सप्तमेश द्वारा स्त्रों पक्ष एवं नौकरी-व्यवसाय में कुछ कठिनाइयां आती है।
पिता के धन पर कब्जा, उम्र बड़ी, पत्नी स्वस्थ सुखी, उत्तम शानदार रोजगार, चतुराई से धन कमाना। जीवन कुछ बंधनमय, धनाढ्य, बहुत ही सुन्दर, विवाह होते ही धन बढ़ गया, पत्नी धन को सँभाल कर रखे, धन प्राप्ति सात बार।
सातवीं शत्रु दृष्टि से शुक्र के आठवें स्थान को देखने पर जातक को प्राचीन वस्तुओं का लाभ मिलता है। वह अपनी चालाकी तथा होशियारी से सफल होता है। ऐसा व्यक्ति हर प्रकार से धनी होता है।
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शुक्र तृतीय भाव में –मेष लग्न में शुक्र के तीसरे भाव में स्थित होने से जातक साहसी तथा कुशाग्र बुद्धि वाला होता है। उसे भाई-बहनों का सुख-सहयोग पूर्ण रूप से मिलता है। लेकिन सप्तमेश का प्रभाव होने के कारण पत्नी को कुछ कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं। कारोबार में रुकावटें आती हैं।
पुरुषार्थी, चतुर भाई-बहनों का योग, पत्नी, देवर को बहुत चाहती है, परन्तु वैसे नहीं बनती, जीवन में शत्रुता, भाग्यवान, धार्मिक अरुचि, पत्नी धन लेकर भाई के पास झगड़े के कारण पहुँच कार।
सातवों समदृष्टि से नौवें भाव को देखने पर व्यक्ति धार्मिक प्रवृत्ति का तथा भाग्यवान बन जाता है। निष्कर्षतः, इस कुण्डली का जातक बहुत पराक्रमी, साहसी, धन-धान्य से पूर्ण तथा समाजसेवी होता है।
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शुक्र चतुर्थ भाव में-मेष लग्न के चौथे भाव में चन्द्रमा की राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक को घर में कोई सुख नहीं मिलता। लेकिन शुक्र के दूसरे स्थान पर तथा केन्द्र में स्थित होने के कारण धन-परिवार का असीम सुख प्राप्त होता है। नौकरी और व्यवसाय के क्षेत्र में स्थिति सामान्य होती है।
माता तथा पत्नी दोनों ही सुन्दर हैं, पत्नी की सास सेवा खूब करती है, बह से सन्तुष्ट है, ससुराल से सवारी मिले। ससुराल से भूमि मिले, सरकारी सहायता, उत्तमपद, जीवन सुखी, मकान भव्य, अमीरों के ठाट, मकान में उत्तर की तरफ धन गढ़ा है।
सातवीं मित्र दृष्टि से इस कुण्डली के जातक को अपने पिता से काफी सहायता मिलती है। ऐसा व्यक्ति अपने व्यवसाय में पूर्णतः सफल होता है, जिसके परिणाम स्वरूप वह सुखी जीवन व्यतीत करता है।
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शुक्र पंचम भाव में-मेष लग्न में शुक्र के पांचवें भाव में स्थित होने से जातक को शिक्षा-दीक्षा तथा सन्तान सुख में अड़चनें आती हैं। लेकिन कुछ समय के बाद उसे उनमें सफलता मिलती है।
पत्नी पुत्रवती, पत्नी सन्तान को गोद में लिए बैठी रहे, पुत्र बीर और विद्वान्, उत्तम कारोबार में संलग्न, कारोबार पुत्रों के नाम पर, पत्नी अधिक शिक्षित, प्राइवेट स्कूल चलायेगा।
इसकी सातवीं दृष्टि द्वारा ग्यारहवें भाव को देखने से जातक की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी रहती है। वह हर प्रकार से सुखी-सम्पन्न होकर अपना जीवन व्यतीत करता है।
शुक्र षष्ठम भाव में मेष लग्न के छठवें भाव में मित्र बुध की राशि पर स्थित शुक्र की नीच दृष्टि पड़ने से जातक को शत्रु पक्ष से हानि होती है। वह अपनी ही चालाकी तथा जल्दबाजी का शिकार हो जाता है, जिससे उसे काफी आर्थिक एवं शारीरिक नुकसान उठाना पड़ता है।
-पत्नी को रोग धन की चिन्ता, पिता की चोरी, ननसाल धनाढ्य, पत्नी का खर्च अधिक, वीर्य दोष।
शुक्र द्वारा सातवीं शत्रु दृष्टि से आारहवें स्थान को देखने पर जातक का व्यग क्षेत्र बढ़ जाता है। लेकिन उसे बाह्य संसाधनों से कुछ सफलता भी मिलती है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन के हर क्षेत्र में काफी दुःख तथा परेशानी उठाता है। जीविकोपार्जन के लिए उसे अधिक परिश्रम करना पड़ता है, लेकिन सफलता कम मिलती है।
शुक्र सप्तम भाव में-मेष लग्न के सातवें भाव में स्थित शुक के प्रभाव से जातक की स्त्री तथा व्यवसाय के क्षेत्र में काफी सफलता मिलती है। आय के स्रोतों में अपार वृद्धि होने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
अमीर घर की पत्नी प्राप्त, पत्नी बहुत सुन्दर, स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित, घर में शान-शौकत, ठाट-बाट, दैनिक रोजी भरपूर, बहू के आते ही अमीरी आ गई, दान दहेज खूब मिले, स्वयं सुन्दर आकर्षक, मोहक, प्रसन्नमुख, राजयोग, पत्नी पर व्यय सार्थक है।
सातवों दृष्टि द्वारा लग्न को देखने से जातक शारीरिक दृष्टि से मजबूत, खूज़सूरत, मेहनती तथा स्वस्थ होता है। कुल मिलाकर वह बहुत होशियार, सभ्य एवं धनी
होता है। परिवार के साथ हर प्रकार से सुखी-सम्पन्न जीवन-थापन करता है।
शुक्र अष्टम भाव में- आठवां भाव मेष लग्न के आठवें भाव में शत्रु मंगल की राशि पा स्थित दूसरे तथा सातवें शुक्र के प्रभाव से जातक को कुटुम्ब, धन एवं व्यवसाय के क्षेत्र में कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। स्त्री पक्ष को भी कां परेशानियों से जूझना पड़ता है। लेकिन कुछ स्थितियों में आयु एवं कई पुरस्क वस्तुओं का लाभ मिलता है।
पिता के धन की कमी, पत्नी को मृत्यु-तुल्य कष्ट, यात्रा में धन प्राप्त, पत्नी आज्ञा न माने, दैनिक रोजी में कमी, गृहस्थी में जीवन दुखी, अंडज पर प्रहार।
शुक द्वारा सातवीं दृष्टि से इसी राशि को देखने पर जातक को कठिन परिश्रम करना पड़ता है, जिससे उसकी आय के साथ-साथ परिवार में भी बढ़ोत्तरी होती है। बुद्धि तथा विवेक से उसके रुके हुए सारे काम बन जाते हैं।
शुक्र नवम भाव में-मेष लग्न के नौवें भाव में शत्रु बृहस्पति की राशि पर तीन दिशाओं द्वारा शुक्र का प्रभाव होने से जातक बहुत ही चतुर, नम्र, भाग्यवान एवं कुशाग्र बुद्धि का होता है। इसी भाव में उसे पत्नी तथा परिवार के सदस्यों का सुख मिलता है।
पत्नी बड़ी भाग्यवान् है, तनिक बड़ी भी है, शिक्षित है, पिता की सम्पत्ति भाग्य में लिखी है, पत्नी अपने भाई का ध्यान रखती है।
शुक्र द्वारा सातवीं मित्र दृष्टि से तीसरे भाव को देखने पर जातक के पराक्रम में वृद्धि होती है। उसे अपने भाई-बहनों का अच्छा सुख मिलता है। इससे यहीं निष्कर्ष निकलता है कि ऐसी ग्रह स्थिति वाला व्यक्ति हर प्रकार से हमेशा सुखी एवं सम्पन्न होता है।
शुक्र दशम भाव में मेष लग्न के दसवें भाव में मित्र शनि की राशि पर स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक को घर-परिवार से पूर्ण सहयोग मिलता है। उसे अपने पिता से भरपूर सुख तथा प्यार प्रास होता है।
पिता का धन पिता के कब्जे में है, पली सर्विस करना चाहती है, पत्नी ससुर की सेवा करती है, माँ के पास अधिक रहती है, पत्नी कहती है कि सर्विस करो, विवाह होते ही नौकरी लगी।
शुक्र द्वारा सातवीं शत्रु दृष्टि से चौथे भाव को देखने पर जातक को रोटी, कपड़ा एवं मकान का अभाव कभी नहीं रहता। इसका सारांश यहाँ निकलता है कि ऐसी ग्रह स्थिति बाला व्यक्ति हर प्रकार से सुखी-सम्पन्न होता है। उसे माता, पिता एवं पत्नी का सुख तथा सरकार द्वारा सम्मान मिलता है। वह यशस्वी और परम चतुर होता है। उसके पास धन की कमी नहीं होती।
शुक्र एकादश भाव में-मेष लग्न के ग्यारहवें भाव में मित्र शनि की राशि पर स्थित षष्ठमेश तथा दूसरे स्थान पर शुक्र के प्रभाव से जातक अपने ज्ञान-विवेक द्वारा खूब नाम कमाता है। साथ ही वह धन-धान्य से पूर्ण भी होता है। स्वयं के व्यवसाय एवं परिवार से काफी सुख भोगता है।
पिता के धन से रोजगार आरम्भ, कारोबार, पत्नी के नाम पर लाभप्रद, पत्नी कहती है कि कारोबार करो, उच्च अभिलाषा की पूर्ति हो, कारोबार में लड़कियाँ कार्य करें, अगले जन्म में रोजगार सुचारु रूप से चलाएगा।
सातवीं शत्रु दृष्टि द्वारा पांचवें स्थान को देखने से जातक को धन, शिक्षा तथा सन्तान का सुख मिलता है। ऐसा व्यक्ति उच्च शिक्षित होने से चतुर, विवेकशील तथा समाजसेवी बन जाता है।
शुक्र द्वादश भाव में-मेष लग्न के बारहवें भाव में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक अचल सम्पत्ति तथा बाह्य संसाधनों द्वारा धन-यश प्राप्त करता है। अधिक धन कमाने के साथ-साथ वह अधिक व्यय भी करने लगता है।
पिता की सम्पत्ति नष्ट, पत्नी के विषय में अधिक, खर्च, रोगिणी, क्षेत्र का प्रधान, कारोबार में लड़कियाँ कार्य करें। वीर्य दोष, पिछले जन्म में किसी की पत्नी तथा धन का अपहरण किया है, इस कारण धन तथा पत्नी से वियोग के कारण दुखी है।
शुक्र द्वारा सातवीं नीच दृष्टि से मित्र राशि के छठवें भाव को देखने के परिणाम स्वरूप जातक शत्रु पक्ष से बड़ी चतुराई से अपना काम निकाल लेता है। कभी- कभी इसी कारण उसे हानि भी उठानी पड़ती है। कुल मिलाकर ऐसी ग्रह स्थिति वाला व्यक्ति कठिन परिश्रमी एवं धनी होता है।
मेष लग्न के जातक मेष लग्न में शनि के होने से पढ़ने वाले प्रभावों की जानकारी के लिए पढ़ें अगले रविवार का दशासन कृत ज्योतिष का साप्ताहिक समाचार
ज्योतिषाचार्य कौशल जोशी शास्त्री
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