Tue. Oct 14th, 2025
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जनतानामा न्यूज़ भुवन जोशी अल्मोड़ा उत्तराखण्ड

वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त


हिंदू पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है. अमावस्या का मुहूर्त 5 जून यानी कल शाम 7 बजकर 54 मिनट पर शुरू हो चुका है और मुहूर्त का समापन 6 जून यानी आज सुबह 6 बजकर 07 मिनट पर होगा.  उदयातिथि के अनुसार, वट सावित्री व्रत इस बार 6 जून यानी आज ही रखा जा रहा है. आज 6 जून को अमृत काल में सुबह 5 बजकर 35 मिनट से सुबह 7 बजकर 16 मिनट तक पूजन करना शुभ रहेगा।
इसके अलावा 8 बजकर 56 मिनट से 10 बजकर 37 मिनट तक पूजा के लिए अच्छा मुहूर्त है। इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 52 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक इस मुहूर्त में भी आप पूजा कर सकते हैं

जानिये क्यों और कैसे करते हैं वट सावित्री व्रत
क्या है वट सावित्री का पर्व और क्यों है ये इतना महत्वपूर्ण है. हिन्दू परंपरा में स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए तमाम व्रत का पालन करती हैं. वट सावित्री व्रत भी सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है.

क्या है वट सावित्री का पर्व और क्यों है ये इतना महत्वपूर्ण है. हिन्दू परंपरा में स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए तमाम व्रत का पालन करती हैं. वट सावित्री व्रत भी सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है.

वट सावित्री व्रत-कथा और इसकी महिमा

यह ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है. इस बार यह व्रत आज 6 जून को किया जाएगा. इसके साथ सत्यवान- वित्री की कथा जुड़ी हुई है. जिसमें सावित्री ने अपने संकल्प और श्रद्धा से, यमराज से, सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे. महिलाएं भी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए इस दिन व्रत और संकल्प लेती हैं.

सुहागिन महिलाओं द्वारा हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। कहा जाता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है।

इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवति महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है ।

प्रचलित वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार सावित्री के पति अल्पायु थे, उसी समय देव ऋषि नारद आए और सावित्री से कहने लगे की तुम्हारा पति अल्पायु है। आप कोई दूसरा वर मांग लें। पर सावित्री ने कहा- मैं एक हिंदू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं। इसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी।

सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है। सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं।

उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है।

सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा।

‍ सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया। वट सावित्री अमावस्या के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन और व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की ही मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है।


सावित्री के पतिव्रता धर्म की कथा का सार यह है कि एकनिष्ठ पतिपरायणा स्त्रियां अपने पति को सभी दुख और कष्टों से दूर रखने में समर्थ होती है।

जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से छुड़ा लिया था। इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति भी वापस दिला दी। उसी प्रकार महिलाओं को अपना गुरु केवल पति को ही मानना चाहिए। गुरु दीक्षा के चक्र में इधर-उधर नहीं भटकना चाहिए।

वट अमावस्या का उत्तराखंड, उड़ीसा, बिहार, उत्तरप्रदेश आदि स्थानों पर विशेष महत्व है। अत: वहां की महिलाएं विशेष पूजा-आराधना करती हैं। साथ ही पूजन के बाद अपने पति को रोली और अक्षत लगाकर चरणस्पर्श कर मिष्ठान प्रसाद वितरित करती है।

इस व्रत को करने से सुखद और सम्पन्न दाम्पत्य का वरदान मिलता है. वटसावित्री का व्रत सम्पूर्ण परिवार को एक सूत्र में बांधे भी रखता है.

वटवृक्ष (बरगद) की पूजा क्यों की जाती है

👉वट वृक्ष (बरगद) एक देव वृक्ष माना जाता है

👉ब्रह्मा,विष्णु,महेश और सावित्री भी वट वृक्ष में ही रहते हैं

👉प्रलय के अंत में श्री कृष्ण इसी वृक्ष के पत्ते पर प्रकट हुये थे.

👉तुलसीदास ने वटवृक्ष को तीर्थराज का क्षत्र कहा है.

👉यह वृक्ष न केवल अत्यंत पवित्र है , बल्कि काफी ज्यादा दीर्घायु भी है

👉लम्बी आयु , शक्ति और धार्मिक महत्व को ध्यान रखकर इस वृक्ष की पूजा की जाती है

👉 पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए भी इस वृक्ष को इतना ज्यादा महत्व दिया गया है

क्या है वट सावित्री व्रत का पूजा विधान

👉 प्रातःकाल स्नान करके , निर्जल रहकर इस पूजा का संकल्प लें

👉वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति स्थापित करें

👉 मानसिक रूप से इनकी पूजा करें

👉वट वृक्ष की जड़ में जल डालें, फूल-धूप-और मिष्ठान्न से वट वृक्ष की पूजा करें

👉कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते जाएँ और सूत तने में लपेटते जाएँ

👉कम से कम 7 बार परिक्रमा करें

👉हाथ में भीगा चना लेकर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें

👉फिर भीगा चना, कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को देकर उनका आशीर्वाद लें

👉वट वृक्ष की कोंपल खाकर उपवास समाप्त करें

आज के दिन अन्य विशेष कार्य क्या करें

👉एक बरगद का पौधा जरूर लगवाएं, आपको पारिवारिक और आर्थिक समस्या नहीं होगी

👉निर्धन सौभाग्यवती महिला को सुहाग की सामग्री का दान करें

👉 बरगद की जड़ को पीले कपडे में लपेट कर अपने पास रक्खें