जनतानामा न्यूज़ अल्मोड़ा उत्तराखण्ड
अल्मोड़ा। आस्था, परंपरा और लोकसंस्कृति के प्रतीक ऐतिहासिक माँ नन्दा देवी मेले में शनिवार प्रातःकाल विशेष धार्मिक अनुष्ठान के बीच दुलागांव से कदली वृक्षों को नगर में लाकर मंदिर परिसर में लाया गया। इसके बाद मूर्ति बनाने की प्रक्रिया शुरु हो गई।

सुबह भक्तों की लंबी कतारें, माँ नन्दा सुनन्दा के गगनभेदी जयकारे और पारंपरिक ढोल-दमाऊं की थाप के साथ पूरा नगर भक्तिमय वातावरण से गूंज उठा।
सुबह दुलागांव से भक्तजनों ने कदली वृक्षों को विधिविधान के साथ निकालकर शोभायात्रा के रूप में नगर की ओर प्रस्थान किया। श्रद्धालुओं ने माँ के स्वरूप माने जाने वाले कदली वृक्षों को नंदा देवी मंदिर परिसर में पहुंचाने से पूर्व चंद वंशजों की आराध्य ड्योढ़ी पोखर में पूजा-अर्चना और दर्शन किए। इसके बाद नगर भ्रमण करते हुए वृक्षों को मंदिर तक पहुंचाया गया। पूरे मार्ग में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी और हर गली-चौराहे पर भक्तों ने कदली वृक्षों का स्वागत किया।
इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने माँ नन्दा सुनन्दा के जयकारों के साथ जगह-जगह नारियल, फल-फूल एवं धूप-दीप से पूजा की। नगरवासियों ने अपने-अपने घरों और दुकानों के बाहर दीप प्रज्वलित कर मां का स्वागत किया। मंदिर परिसर में पहुंचने पर विधिविधान से विशेष पूजा-अर्चना की गई और भक्तों को दर्शन कराए गए।
कदली वृक्ष लाने के इस पावन अवसर पर विभिन्न जनप्रतिनिधि और मेला समिति के पदाधिकारी भी मौजूद रहे। कार्यक्रम में नगर निगम महापौर अजय वर्मा, समिति के सचिव मनोज सनवाल, मेला सह संयोजक रवि गोयल, व्यवस्थापक अनूप साह, मुख्य सांस्कृतिक संयोजक एवं कोषाध्यक्ष हरीश बिष्ट, मुख्य संयोजक अर्जुन बिष्ट चीमा, संयोजक मेला अमित साह मोनू, अमरनाथ नेगी, संयोजक अमरनाथ सिंह नेगी, मीडिया प्रभारी कपिल मल्होत्रा, पार्षद कुलदीप मेर, सह संयोजक मेला पार्षद अभिषेक जोशी, सह संयोजक मनोज भंडारी मंटू, धन सिंह मेहता, जीवन नाथ वर्मा, मेला सह संयोजक राजेंद्र बिष्ट, व्यवस्थापक हरीश भंडारी, हितेश वर्मा, जगत तिवारी, आशीष बिष्ट, दया कृष्ण परगाई, नमन बिष्ट, पंकज परगाई, आदित्य बिष्ट, पार्षद ज्योति साह, निर्मला जोशी, शोभा जोशी (पूर्व पालिका अध्यक्ष), धीरेंद सिंह रावत, देवेंद्र कुमार, रवि कन्नौजिया, प्रकाश रावत समेत सैकड़ों भक्तगण उपस्थित रहे।
मेला समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि नन्दा देवी महोत्सव में कदली वृक्षों का विशेष महत्व है। कदली वृक्षों से माँ की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं, जिन्हें बाद में विधिविधान से विसर्जित किया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे माँ की जीवंत उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।
इस दौरान नगर में सांस्कृतिक धरोहर का अनोखा संगम देखने को मिला। ढोल-दमाऊं की थाप और लोकगायक मंडलियों के भजनों ने वातावरण को और भी भक्तिमय बना दिया। श्रद्धालु महिलाएं मंगल गीत गाती हुई शोभायात्रा के साथ चल रही थीं।
नगर के मुख्य मार्गों पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। श्रद्धा और उल्लास का ऐसा अद्भुत संगम शायद ही वर्ष में किसी और अवसर पर देखने को मिलता है। मंदिर परिसर पहुंचने के बाद देर शाम तक दर्शनार्थियों का तांता लगा रहा।